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________________ जघन्य एक समय व उत्कृष्ट अनन्त काल होता है। परमाणु का बंध परमाणुओं में आपस में बंध की प्रक्रिया के बारे में भगवतीसूत्र में भिन्नभिन्न जगह चर्चा की गई है। दो परमाणु पुद्गल आपस में चिपक जाते हैं क्योंकि दो परमाणु पुद्गलों में चिकनापन है, तीन परमाणु-पुद्गल भी परस्पर चिपक जाते हैं। इसी प्रकार पांच परमाणु आदि भी चिपक जाते हैं और स्कंध का निर्माण करते हैं।54 यहाँ स्नेहकाय या स्निग्धता को परमाणुबंध का कारण माना गया है। परमाणुबंध की आगे व्याख्या करते हुए आठवें शतक में कहा है- परमाणु द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक से लेकर संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक पुद्गल स्कन्धों का विमात्रा में स्निग्धता से, विमात्रा में रूक्षता से तथा विमात्रा में स्निग्धता-रूक्षता से बंधन-प्रत्येयिक बंध समुत्पन्न होता है। वह जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्येय काल तक रहता है। परमाणु बंध की इसी प्रक्रिया को समझााते हुए तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया है - स्निग्धरूक्षत्वाबंधः । न जघन्यगुणानाम्। गुणसाम्ये सदृशानाम्। व्यधिकादि गुणानां तु। - (5.32-35) अर्थात् बंध स्निग्धता व रूक्षता के कारण होता है। जघन्य गुण वाले स्निग्ध व रूक्ष अवयवों का बंध नहीं होता है। समान अंश होने पर सदृश्य अर्थात् स्निग्ध से स्निग्ध अवयवों का तथा रूक्ष से रूक्ष अवयवों का बंध नहीं होता है। दो अंश अधिक वाले अवयवों का बंध होता है। पुद्गल-परमाणु का संयोग-वियोग भगवतीसूत्र में बंध की प्रक्रिया में परमाणु से स्कन्ध व स्कन्ध से परमाणु के निर्माण की बात को स्पष्ट किया गया है। भगवतीसूत्र के बारहवें शतक में दो परमाणुओं से लेकर अनन्त प्रदेशी परमाणुओं के संयोग व वियोग पर प्रकाश डाला गया है। दो परमाणु जब आपस में संयुक्त होते हैं तो द्विप्रदेशी स्कन्ध बनता है तथा उनका भेदन होने पर उसके दो विभाग होते हैं। एक तरफ एक परमाणु पुद्गल व दूसरी तरफ दूसरा परमाणु पुद्गल। तीन परमाणु एक रूप में इकट्ठे होकर त्रिप्रदेशिक स्कन्ध का निर्माण करते हैं तथा उनके विभाग होने पर दो विकल्प बनते हैं। एक तरफ एक परमाणु व दूसरी तरफ द्विप्रदेशी स्कन्ध । उसके तीन पृथक्-पृथक् परमाणु भी हो सकते हैं। चार परमाणु मिलकर चतुष्कप्रदेशी स्कन्ध का निर्माण करते हैं। उनका भेदन होने पर चार विकल्प बनते हैं। दो विभाग होने पर एक ओर एक पुद्गल परमाणु व दूसरी ओर त्रिप्रदेशी स्कन्ध या रूपी-अजीवद्रव्य (पुद्गल) 129
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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