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________________ चरमान्त में, ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त में तथा नीचे के चरमान्त से ऊपर के चरमान्त में चला जाता है। लोक के एक सिरे से दूसरे सिरे की दूरी असंख्यात योजन होती है और परमाणु वह दूरी एक समय में तय कर लेता है। पुद्गल-परमाणु निर्माण की प्रक्रिया ___ भगवतीसूत्र में परमाणु निर्माण की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि यह पुद्गल (परमाणु या स्कन्ध) तीनों (वर्तमान, भूत व अनागत) कालों में एक समय तक रूक्ष स्पर्श वाला, एक समय तक अरूक्ष (स्निग्ध) स्पर्शवाला और एक समय रूक्ष व स्निग्ध दोनों प्रकार के स्पर्श वाला रहा है। पहले करण (अर्थात् प्रयोगकरण और विस्रसाकरण) के द्वारा यही पुद्गल अनेक वर्ण और अनेक रूप वाले परिणाम से परिणत हुआ। फिर उन अनेक रूप वाले परिणामों के क्षीण होने पर वह एक वर्ण और एक रूप वाला हुआ। यहां कहने का तात्पर्य है कि एक समय में जो परमाणु रूप है वह दूसरे समय मे स्कन्ध रूप में परिणत हो जाता है तथा एक समय में जो स्कन्ध है वह दूसरे समय में एक वर्ण वाले परमाणु रूप में परिणित हो सकता है। तत्त्वार्थसूत्र में परमाणु निर्माण की प्रक्रिया इस प्रकार स्पष्ट की गई हैसंघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते भेदादणुः - (5.26, 27) अर्थात् स्कंध की उत्पत्ति भेद, संघात व संघात-भेद से होती है जबकि परमाणु भेद से ही बनता है। इस प्रकार पमाणुओं से स्कन्ध का निर्माण होता है तथा स्कन्ध भेद से परमाणु बनते हैं। काल की अपेक्षा से एक परमाणु, परमाणु रूप में जघन्य एक समय तक रहता है तथा अधिक से अधिक संख्यात काल तक रहता है। इसी प्रकार स्कन्ध, स्कन्ध के रूप में कम से कम एक समय तथा अधिक से अधिक असंख्यात काल तक रहता है। इसके पश्चात् उनमें अवश्य परिवर्तन होता है। क्षेत्र की दृष्टि से परमाणु और स्कन्ध एक क्षेत्र में कम से कम एक समय तक व अधिक से अधिक असंख्यात काल तक रह सकते हैं।52 परमाणु व स्कन्ध के निर्माण की प्रक्रिया के अन्तरकाल को भी ग्रंथ में स्पष्ट किया गया है। एक परमाणु या स्कन्ध का अपनी अवस्था को छोड़कर अन्य अवस्था में परिणत हो जाना तथा वापस उसी अवस्था को प्राप्त करने में लगा समय अन्तरकाल कहलाता है। एक परमाणु परमाणुपन छोड़कर स्कन्ध रूप में परिणत होकर पुनः परमाणु हो जाये तो उसे जघन्य एक समय लगता है तथा उत्कृष्ट असंख्यात समय लगता है और द्विप्रदेशी स्कंध, त्रिप्रदेशी स्कन्ध आदि का अन्तरकाल 128 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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