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गया है कि केवलज्ञानी व परमअवधिज्ञानी व्यक्ति ही परमाणु को जानते व देखते हैं। वे भी जिस समय जानते हैं उस समय देखते नहीं हैं और जिस समय देखते हैं उस समय जानते नहीं क्योंकि ज्ञान साकार व दर्शन निराकार होता है। परमाणु में कंपन एवं गति
परमाणु में स्वभावतः सक्रियता व गतिशीलता पाई जाती है, लेकिन इससे यह तात्पर्य नहीं है कि परमाणु सदैव ही गतिशील रहता है कभी स्थिर नहीं होता है। परमाणु में गतिशीलता व स्थिरता दोनों पाई जाती हैं लेकिन उनमें कोई नियमितता नहीं होती है। भगवतीसूत्र में कहा गया है- सिय सेए सिय निरए (25.4.189) अर्थात् परमाणु कदाचित् सकंप होता है कदाचित् निष्कंप होता है। इसी तरह द्विप्रदेशी स्कंध से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध भी कदाचित् सकंप होते हैं कदाचित् निष्कंप होते हैं। यद्यपि परमाणु व स्कन्धों की सक्रियता व निष्क्रियता का काल निश्चित नहीं है, किन्तु यदि कोई परमाणु पुद्गल सकंप अवस्था में है तो वह जघन्य एक समय व उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक सकंप रहता है इसके बाद उसमें अवश्य परिवर्तन होगा। अर्थात् सक्रियता की अवस्था के एक निश्चित समय बाद उसमें निष्क्रियता की अवस्था अवश्य आयेगी। इसी प्रकार एक निष्कंप परमाणु जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक निष्कंप रहता है, इसके बाद उसमें सक्रियता अवश्य आयेगी। यही बात द्विप्रदेशी स्कन्धों से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्धों तक लागू होती है।
एक परमाणु पुद्गल देशकंपक नहीं होता है, सर्वकंपक होता है या निष्कंपक होता है जबकि द्विप्रदेशी स्कन्धों से अनन्त प्रदेशी स्कन्धों को कदाचित् देशकंपक कदाचित सर्वकंपक व कदाचित् निष्कंपक बताया है। ___भगवतीसूत्र के पाँचवें शतक के सातवें उद्देशक में परमाणु में कंपन की प्रक्रिया को विशेष रूप से स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि परमाणु कभी एजन करता है कभी वेजन करता है अर्थात् कभी कांपता है कभी विशेष रूप से कांपता है और विभिन्न भावों में परिणत होता है। इसी तरह द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर असंख्यात व अनन्तप्रदेशी स्कन्धों में एजन व वेजन को स्पष्ट किया गया है।
___ परमाणु में गति की तीव्रता को स्पष्ट करते हुए ग्रंथ में कहा है- परमाणु पुद्गल एक समय में लोक के एक चरमान्त से दूसरे चरमान्त तक चला जाता है। अर्थात् वह एक समय में पूर्वीय चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त में, पश्चिमी चरमान्त से पूर्वीय चरमान्त में, तथा उत्तरी चरमान्त से दक्षिणी चरमान्त में, दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी
रूपी-अजीवद्रव्य (पुद्गल)
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