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________________ भाव की अपेक्षा से कथंचित् चरम व कथंचित् अचरम है । भगवतीसूत्र में दिये उपर्युक्त विवेचन से जैन परमाणु का स्वरूप हमारे सामने स्पष्ट हो जाता है। परमाणु द्रव्य का एक ऐसा अविभाज्य अंश है, जो स्वयं अपना आकार है क्योंकि परमाणु को हम निराकार नहीं कह सकते हैं। निराकार वस्तु द्रव्य नहीं हो सकती और भगवतीसूत्र में परमाणु को द्रव्य व द्रव्यदेश दोनों कहा है। यथा- सिय दव्वं, सिय दव्वदेसे - (व्या. सू. 8.10.23)। यहाँ एक बात और भी ध्यान देने योग्य है कि निराकार वस्तु गुणों को धारण नहीं कर सकती जबकि परमाणु को भगवतीसूत्र में एक गंध, एक रस, एक वर्ण व दो स्पर्श युक्त बताया है। अतः वर्णादि गुणों को धारण करने के कारण ही परमाणु द्रव्य है तथा साकार होने के कारण परमाणु स्वयं अपना आकार है वह स्वयं अपनी लम्बाई, चौड़ाई व मौटाई है। परमाणु के प्रकार भगवतीसूत्र में परमाणु के चार प्रकार बताये गये हैं1. द्रव्य परमाणु, 2. क्षेत्र परमाणु, 3. काल परमाणु, 4. भाव परमाणु। द्रव्य परमाणु- वर्णादि की विवक्षा किये बिना एक परमाणु को द्रव्य परमाणु कहते हैं। भगवतीसूत्र में द्रव्य परमाणु चार प्रकार का बताया गया हैअछेद्य, अभेद्य, अदाह्य व अग्राह्य। क्षेत्र परमाणु- एक आकाश प्रदेश को क्षेत्र परमाणु कहते हैं। क्षेत्र परमाणु भी चार प्रकार का बताया गया है- अनर्द्ध, अमध्य, अप्रदेश व अविभाज्य। काल परमाणु- एक समय को काल परमाणु कहते हैं। काल परमाणु के अवर्ण, अगंध, अरस व अस्पर्श ये चार प्रकार बताये हैं। भाव परमाणु- वर्ण आदि धर्म की प्रधानता की दृष्टि से एक परमाणु की विवक्षा करना भाव परमाणु कहलाता है। इसके भी चार प्रकार बताये हैंवर्णवान, गंधवान, रसवान व स्पर्शवान। इन्द्रियातीत ___परमाणु रूपी व मूर्त है क्योंकि वह वर्ण, रस, गंध व स्पर्श से युक्त होता है। लेकिन एक सूक्ष्म परमाणु रूपी होते हुए भी इन्द्रियातीत है। वह पारमार्थिक प्रत्यक्ष से ही देखा जा सकता है। छद्मस्थ व्यक्ति परमाणु पुद्गल को जानता है, किन्तु देखता नहीं है। कोई-कोई तो न जानता है न देखता है। चूंकि परमाणु अपनी सूक्ष्मता के कारण इन्द्रियातीत होता है अतः भगवतीसूत्र में स्पष्ट किया 126 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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