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________________ छिन्न-भिन्न हुए ठहर सकता है। परमाणु पुद्गल में शस्त्र क्रमण (प्रवेश) नहीं कर सकता है। वह महामेघ में प्रवेश कर सकता है, अग्निकाय उसे नहीं जला सकता है, महागंगा नदी की धारा उसे नहीं बहा सकती है। ग्रंथ40 में परमाणु को आकार रहित बताते हुए कहा है- परमाणु पुद्गल अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेशी है। अर्थात् परमाणु का आदि, मध्य व अन्त एक ही है। इस दृष्टि से परमाणु एक विशुद्ध ज्योमितिक बिन्दु के रूप में जाना जा सकता है क्योंकि उसकी न लम्बाई है, न चौड़ाई है, न गहराई । वह अविम (Dimensionless) है। वह अन्तिम व शाश्वत इकाई है। परमाणु के इसी स्वरूप का समर्थन करते हुए तत्त्वार्थराजवार्तिक में कहा गया है- अंतादि अन्तमज्झं अंतन्तं णेव इंदिए गेज्झं। जं दव्वं अविभागी तं परमाणु विजाणीहि। - (5.25.1) अर्थात् जो स्वयं अपना आदि, मध्य व अन्त हो वह अविभाज्य अंश परमाणु है। भगवतीसूत्र में परमाणु को अभेद्य, अछेद्य व अविभाज्य रूप में स्वीकार किया है, किन्तु विज्ञान की दृष्टि से परमाणु टूटता है। इस समस्या का समाधान अनुयोगद्वारासूत्र में किया गया है। अनुयोगद्वारासूत्र में परमाणु के दो प्रकार बताये गये हैं- 1. सूक्ष्म परमाणु, 2. व्यावहारिक परमाणु। सूक्ष्म परमाणु का स्वरूप इसमें भगवतीसूत्र के समान ही वर्णित है। व्यवहारिक परमाणु को अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं का समुदाय बताया गया है। यद्यपि वह स्वयं परमाणु-पिंड है, किन्तु साधारण दृष्टि से ग्राह्य न होने के कारण तथा अभेद्य व अछिन्न होने के कारण उसकी सूक्ष्म परिणति है अतः व्यवहार से उसे परमाणु कहा गया है। विज्ञान के परमाणु की तुलना इस व्यावहारिक परमाणु से हो सकती है। भगवतीसूत्र42 में परमाणु को एक द्रव्य व द्रव्य देश दोनों ही बताया है। परमाणु की सूक्ष्मता का विवेचन करते हुए कहा गया है कि परमाणु-पुद्गल वायुकाय से स्पृष्ट है किन्तु वायुकाय परमाणु पुद्गल से स्पृष्ट नहीं है43 अर्थात् वायुकाय बड़ा है और परमाणु सूक्ष्म व अप्रदेशी। वायुकाय उसमें प्रवेश नहीं कर सकता है। परमाणु की शाश्वतता व अशाश्वता को बताते हुए कहा गया है कि द्रव्यार्थ रूप से परमाणु शाश्वत है, किन्तु वर्ण, रस, गंध, स्पर्श आदि पर्याय रूप से वह अशाश्वत है क्योंकि पर्यायें प्रतिक्षण बदलती रहती हैं। इसी तरह परमाणु की चरमता व अचरमता को बताते हुए भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर कहते हैंपरमाणु चरम भी है, अचरम भी है। द्रव्य की अपेक्षा से परमाणु पुद्गल अचरम है। क्षेत्र की अपेक्षा से कथंचित् चरम कथंचित् अचरम है। इसी तरह काल व रूपी-अजीवद्रव्य (पुद्गल) 125
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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