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11.
संदर्भ 1. व्या. सू., 2.10.1, 25.4.8
'द्रव्यं-भव्वे' जैनेन्द्र व्याकरण, 4.1.158 'दवियदि गच्छदि......... अणण्ण भूदं तु सत्तादो।' - पंचास्तिकाय, गा. 9 'यथास्वं पर्यायैदूर्यन्ते द्रवंति वा तानि इति द्रव्याणि।' सर्वार्थसिद्धि 5.2.529, पृ. 202 पंचध्यायी पूर्वार्द्ध, टीकाकार शास्त्री मक्खन लाल, गा. 143 ‘ण हवदि जदि सद्दव्वं.........दव्व सयं सत्ता।' प्रवचनसार, गा., 105 'दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं।' - पंचास्तिकाय, गा. 10
तत्त्वार्थसूत्र (हिन्दी विवेचन), संघवी, सुखलाल, पृ. 194 9. वही, पृ. 196 10. नियमसार, गा.9
पंचास्तिकाय, गा. 12, 13 12. सर्वार्थसिद्धि,5.38.600 13. प्रमाणनय तत्त्वालोक, 5.6-8 पृ. 82
(क) न्यायविनिश्चय, प्रथम प्रत्यक्षप्रस्ताव (ख) तत्त्वार्थवार्तिक, 5.22 15. आप्तमीमांसा, 4.71.7 16. 'अथिरे पलोट्टति जाव पंडितत्तं आसासतं' - व्या. सू. 1.9.28
'अट्ठविहा आया पन्नत्ता, तं जहा दवियाया.........विरियाया।' वही, 12.10.1 18. पंचास्तिकाय, गा. 12, 17 19. मेहता मोहनलाल- जैन धर्म-दर्शन, पृ. 123-129 20. व्या. सू., 25.4.8 21. उत्तराध्ययन, 28.7
जैन सिद्धान्त दीपिका, 1.1-2 23. (क) पंचास्तिकाय, गा. 124, (ख) प्रवचनसार, गा. 127, (ग) व्या. सू., 25.2.1 24. पंचास्तिकाय, गा. 97 25. प्रवचनसार, गा. 129 26. व्या. सू., 2.10.2-6, 25.2.2-3 27. बृहद्रव्य संग्रह, प्रथम अधिकार, चूलिका, पृ. 60-63 28. व्या. सू., 2.10.1 29. बृहद्रव्य संग्रह, प्रथम अधिकार, चूलिका, पृ. 60-63 30. 'जीवा कामी वि भोगी वि' - व्या. सू.7.7.13 31. वही, 25.2.1-2
32. वही, 10.1.8 33. वही 2.10.11
34. वही, 25.4.8 35. वही, 2.10.1
22.
द्रव्य