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________________ 262 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति का मुक्ताओं का हार था जो राजा सेणिय बिम्बिसार 27 मगधराज द्वारा अपने छोटे पुत्रों हल्ल और बेहल्ल को जो कि उसकी रानी चेल्लणा के पुत्र थे उपहार में दे देना था। चेल्लणा राजा चेटक की पुत्री थी । कुणिक ने जब पिता की गद्दी पर अधिकार जमा लिया और शक्तिशाली अधिपति बन गया तब पत्नी के उकसाने पर उसने अपने भाइयों से दोनों उपहार वापिस मांगे। छोटे दोनों भाइयों ने पिता के उपहार को वापिस करने से इन्कार कर दिया और उसी समय भागकर अपने नाना चेटक के यहां शरण ले ली। चेटक द्वारा दोनों शरणार्थियों तथा उपहार के शान्तिपूर्वक तरीके से वापिस नहीं लौटाने पर राजा कुणिक ने चेटक से युद्ध की ठान ली। 28 आजीवक सम्प्रदाय के नेता मखलिपुत्त गोशाल ने भी इन युद्धों का उल्लेख किया है। जैन सूत्रों से ज्ञात होता है कि मखलिपुत्त की मृत्यु से सोलह वर्ष पश्चात् जब महावीर का परिनिर्वाण हुआ उस समय भी मगध के विरुद्ध मल्लकी तथा लिच्छवी के गणराज्यों के संघ बने हुए थे। इन संघीय राज्यों ने महावीर के परिनिर्वाण के उपलक्ष्य में दीपक जलाये थे | 29 गणराज्य व्यवस्था जैन सूत्रों में प्राय: गण शब्द का उल्लेख हुआ है। प्रायः गण का अभिप्राय गणतान्त्रिक प्रजा से ही है। भगवान महावीर के समय में लिच्छवि एवं शाक्य आदि अनेक शक्तिशाली गणतन्त्र राज्य थे । वज्जि गणतन्त्र में नौ लिच्छवि और नौ मल्लकी तथा काशी और कोसल के अट्ठारह गणराज्य सम्मिलित थे। कल्पसूत्र में इसे ठगणरायाणोठ लिखा है। 30 अतएव वृहदवृत्ति में भी उक्त शब्द की व्याख्या करते हुए शान्त्याचार्य लिखते हैं, गणामल्लादि समूहाः । यों तो राज्यतन्त्र ही प्राचीन भारत की सर्वमान्य संस्था थी किन्तु जहां राज्य तन्त्र नहीं था वहां कुलीनतन्त्र, गणतन्त्र तथा लोकतन्त्र जैसी शासन व्यवस्था थी । " कुछ लोगों की मान्यता है कि गणराज्य प्राचीन भारत में थे ही नहीं अपितु वह जनजातीय राज्य थे। उदाहरण के लिए मालवगण व यौधेयगण क्रमशः मालवा तथा यौधेय के गणराज्य नहीं थे अपितु मालव व यौधेय जनजातियां होने पर भी उनके राज्य गणराज्यीय व्यवस्था से शासित थे | 32 गण एक निश्चित प्रकार के शासनतन्त्र थे जो राज्यतन्त्र से भिन्न थे। गण ऐसी शासनसंस्था थे जिसमें सम्प्रभुता व्यक्ति में निहित न होकर गण या समूह में निहित होती थी। 34 गणसभा में केवल क्षत्रिय होते थे जो राजन्य कहे जाते थे। 35 जैन साधु को आगाह किया गया है कि वह ऐसे देश में जहां राजा न हो, या युवराज शासक के रूप में हो या दो राजा आपस में लड़ रहे हों या जो गणराज्य द्वारा शासित हो में जाने से बचे | 36 जैन साधु के लिए वर्जित क्षेत्रों में गणराज्यों को
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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