SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 263 भी परिगणित करना आश्चर्यजनक लगता है। ऐसा प्रतीत होता है कि विविध कारणों से गणराज्यों का पतन प्रारम्भ हो गया था और उनमें अराजकता, अव्यवस्था तथा चारित्रिक अपकर्ष की स्थिति आ चुकी थी। श्रमण को ऐसे स्थान से बचना चाहिए जहां राजा न हो या एकाधिक राजा हो, या अमनोनीत राजा हो या द्वैराज्य हो या शासनतन्त्र न हो या दुर्बल तन्त्र हो क्योंकि ऐसे स्थान पर अज्ञानी प्रजा साधु का उत्पीड़न कर सकती है। हिंसा कर सकती है। किसी देश का गुप्तचर समझकर दुर्व्यवहार कर सकती है। स्पष्ट है कि उस समय भारत में गणराज्यों की भी व्यवस्था थी।” काशी और कोसल में मल्ल और लिच्छवियों का शासन था इससे यह सिद्ध है कि उस समय भी भारत कई प्रान्तों में विभक्त था जिनमें अलग-अलग शासकों का शासन था जो सीमाओं की सुरक्षा अथवा विस्तार के लिए परस्पर लड़ते रहते थे। गणों का निश्चित विधान होने के कारण गण का एक निश्चित वैधानिक अर्थ था। बहुसंख्यक मुद्रासाक्ष्य इसे प्रमाणित करते हैं। उदाहरण के लिए मुद्राओं पर यौधेय, मालव और आर्जुनायन राजाओं का नहीं वरन् उनके गण का उल्लेख है जो यह स्पष्ट करता है कि उनका तात्पर्य जन या जाति से नहीं अपितु गण या लोकतन्त्र राज्य व्यवस्था से है जिसकी मुद्राएं चलायी गयीं। यूनानी लेखकों ने अवश्य ही भारत में प्रजातन्त्रीय राज्यों का उल्लेख किया है। फिक का मत है कि ग्रीक लेखकों द्वारा वर्णित प्रजातन्त्र या स्वयंशासित राज्य छोटी-छोटी रियासतें या नगर राज्य थे जो मगध जैसे साम्राज्य के निकट रह कर भी स्वायत्तता बनाये हुए थे।38 कुछ लेखकों का कथन है कि इन राज्यों को प्रजातन्त्र या लोकतन्त्र कहना उचित नहीं है क्योंकि इनमें सारे अधिकार साधारण जनता के हाथ में नहीं वरन् एक छोटे से उच्चवर्ग के हाथ में थे। यौधेयों में शासनसूत्र 5000 व्यक्तियों की परिषद के हाथ में था जिनमें से प्रत्येक के लिए राज्य को एक हाथी देना जरूरी था। स्पष्ट है कि इस राज्य में उच्चवर्ग के सदस्य ही होते थे जो एक हाथी देने की सामर्थ्य रखते थे। जनसाधारण का राज्य के शासन में कोई हाथ न था। शाक्यों और कोलियों के राज्य में यही स्थिति थी। इसमें सन्देह नहीं कि आजकल प्रजातन्त्र और लोकतन्त्र का जो अर्थ है इस अर्थ में तो प्राचीन भारत के यौधेय, शाक्य, मालव और लिच्छवि गणराज्य लोकतन्त्र नहीं कहे जा सकते। आधुनिक उन्नतिशील लोकतन्त्र राज्यों की भांति प्राचीन भारत के इन गणराज्यों में शासन की बागडोर सामान्य जनता के हाथ में नहीं थी किन्तु फिर भी इन्हें हम प्रजातन्त्र या गणतन्त्र कह सकते हैं। राजनीति के प्रमाणभूत ग्रन्थों के अनुसार प्रजातन्त्र राज्य वह है जिसमें सर्वोच्च शासन अधिकार राजतन्त्र की भांति एक व्यक्ति के हाथ में न होकर एक समूह गण
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy