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राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 261
प्रस्थान किया।
राजा कुणिक ने युद्ध बहुत बहादुरी से लड़ा और नौ मल्लकियों, नौ लिच्छवी, काशी-कोसल और उनके अट्ठारह गणराजाओं की संयुक्त सेना को एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर खदेड़ा। इस संग्राम में जितने भी हताहत हुए या कालकवलित हुए उनमें यही नाद किया कि वह महाशिला से मारे गये इसीलिए इस युद्ध को महाशिला कण्टक संग्राम कहा गया। इस युद्ध में चौरासी लाख व्यक्ति मारे गये किन्तु युद्ध में कुणिक की विजय निर्णायक विजय नहीं थी। 22
महाशिलाकण्टक युद्ध अनिर्णायक रहने के कारण शीघ्र ही दूसरा महायुद्ध रथमूसल संग्राम” आरम्भ हो गया जिसे महाश्रमण महावीर ने जाना और याद किया। यह युद्ध मगधराज कुणिक तथा नौ मल्लकी व नौ लिच्छवियों के बीच हुआ जिसमें मल्लकी और लिच्छवियों के संगठन का नेतृत्व वैशाली का प्रतापी राजा चेटक कर रहा था किन्तु इस दूसरे महासंग्राम में काशी कोसल व अट्ठारह गणराजाओं का उल्लेख प्राप्त नहीं होता।
अब की बार कुणिक युद्ध मैदान में चतुरंगिणी सेना के साथ तो आया ही साथ ही नया विध्वंसक युद्धास्त्र लेकर आया। महाशिलाकंटक के समान ही उसने अपनी कुशल सेना के साथ नौ मल्लकी और नौ लिच्छवियों की सेना को एक दिशा से दूसरी में खदेड़ा। रथमूसल एक ऐसा रथ था जिसमें एक बहुत बड़ा मूसल जुड़ा था। इसे हर दिशा में दौड़ाया जिससे अपार जनहानि हुई तथा एक कल्प 24 तक के लिए उसने शत्रुओं का पूर्ण उन्मूलन कर दिया तथा युद्धभूमि को रक्त की कीच से सींच डाला। इस युद्ध में छियानवें लाख व्यक्तियों ने जान से हाथ धोये और कुणिक ने शत्रुओं को भयानक पराजय दी।
श्रमणोपासक नागपुत्र वरुण जो कि वैशाली का प्रमुख नागरिक था, उसे राजा के आदेश, गण तथा परिषद के आदेश तथा सेना के आदेश मिले कि वह रथमूसल संग्राम में शत्रु के विरुद्ध भाग ले । उसे अपने राज्य के आज्ञापत्र के समक्ष झुकना पड़ा तथा अपनी सशस्त्र सेना जिसमें अनेक गणप्रमुख तथा राजपूत सीमा रक्षक थे, के साथ युद्ध को प्रयाण किया । उसने युद्ध में स्वयं आक्रमण न करने की नीति का पालन किया। शत्रु के तीर से बुरी तरह आहत होने पर उसने तुरन्त युद्ध भूमि को छोड़ दिया तथा अपनी अन्तिम सांस एकान्त भूमि में निर्ग्रन्थमत की शिक्षाओं के अनुसार ली। 25
किन्तु इन दो महासंग्रामों जिसमें चेटक की अधीनता में इतनी बड़ी युद्ध संधि करके मल्लकी और लिच्छवीगण आये का मूल कारण क्या था इस विषय पर सूत्रकृतांग, कल्पसूत्र और भगवतीसूत्र तीनों मौन हैं।
जैनग्रन्थ निर्यावलिसूत्र के अनुसार इस महान संघर्ष का कारण प्रसिद्ध हाथी सेयांग सेचनक था जो कि बहुत चमकीला था तथा जिसके गले में अट्ठारह लड़