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________________ 212 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति का पालन हो जाता है। श्रावक द्वारा ब्रह्मचर्य का पालन किये जाने का अर्थ है अपनी पत्नी के प्रति एकनिष्ठ होना। अन्य स्त्री की कामना मात्र से इस व्रत को क्षति पहुंचती है। एकनिष्ठ वैध संभोग इस व्रत की शुद्धता का द्योतक है। इससे व्यक्ति को सुरक्षा और सन्तोष दोनों ही प्राप्त होते हैं। सारांशत: आत्मा की खोज में निकले हए श्रावक के लिए यह पांचों व्रत पथ प्रदर्शक स्तम्भ हैं। इन व्रतों में पाया जाने वाला समग्र रूप इस तथ्य में निहित है कि सभी व्रत अन्ततोगत्वा अहिंसा व्रत में ही समा जाते हैं। इनके पालन से व्यक्तित्व परिपूर्ण होता है। श्रावक के आठ मूलगुण अमृतचन्द्र के अनुसार पांच अणुव्रतों के अतिरिक्त मदिरा, मांस, मधु तथा पांच उदुम्बर फलों के सेवन का परित्याग श्रावक से अपेक्षित था। यह श्रावक के आठ मूल गुण हैं।204 समन्तभद्र ने आठ मूल गुणों की सूची में पांच अणुव्रतों का पालन तथा मांस, मधु, मदिरा, सेवन के परित्याग को गिना है।205 ___ आचार्य अमितगति ने अमृतचन्द्र की सूची को स्वीकार करते हुए एक मूल गुण और जोड़ा वह है रात्रिभोजन का त्याग।206 आचार्य बसुनन्दि ने मृगया, द्यूत, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन तथा चोरी के परित्याग को मूल गुणों के अन्तर्गत बताया है।207 श्रावक के यह आठ मूल गुण उसके अहिंसा व्रत के परिपालन के लिए आवश्यक माने गये हैं। श्रावक के शीलवत पांच अणुव्रतों के पूरक के रूप में सात शीलवतों का पालन श्रावक के लिए आवश्यक है। इन सात शीलवतों के अन्तर्गत तीन गुणव्रत तथा चार शिक्षा व्रत आते हैं। तत्वार्थ सूत्र208 के अनुसार गुणवत यह हैं : (1) दिग्वत, (2) देशावकाशिक, तथा (3) अनर्थदण्डव्रत। चार शिक्षा व्रत इस प्रकार हैं-(1) सामायिक, (2) पौषधोपवास, (3) भोगोपभोग तथा (4) अतिथिसंविभाग। समन्तभद्र के अनुसार गुणवतों का पालन अणुव्रतों के पालन में निश्चय को
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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