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________________ 210 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति मौन रहना ही अच्छा है। लेकिन यदि बोलना अनिवार्य ही हो अथवा न बोलने पर सुनने वाले के मन में सन्देह उत्पन्न होने की आशंका हो तो तथ्य छिपाना भी सत्यव्रत का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता।।96 अस्तेयाणुव्रत अस्तेय का अर्थ है चोरी नहीं करना अर्थात् दूसरे की सम्पत्ति का अवैधानिक अपहरण। भारतीय नीति शास्त्र में मानव जीवन के चार लक्ष्यों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से अर्थ को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसी अर्थ में धन सम्पत्ति को भी पुरुषार्थ कहा जाता है। जैनों ने भी जीवन रक्षा के लिए अर्थ को बड़ा सहायक बताया है। प्राचीन भारतीय धर्म ग्रन्थों से भी यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि आवश्यकता से अधिक धन संचय करने का प्रणियों का अधिकार है। श्रीमद्भागवत में तो यहां तक कहा गया है कि जितनी सम्पत्ति से पेट भरने का काम चल सके, उतना ही धन संचय करने का प्राणियों को अधिकार है।।97 __इस व्रत के पालन के विषय में भी गृहस्थ की अपनी कुछ सीमाएं हैं। इसलिए उससे केवल सापेक्ष पालन की ही आशा की जाती है। गृहस्थ के लिए इस व्रत के पालन का अर्थ है-न दी गयी वस्तुओं को न लेना और दूसरों की गिरी हुई, छूटी हुई या खोई हुई वस्तुओं को न उठाना। इसी प्रकार गृहस्थ को चाहिए कि वह भूमिगत तथा अनाधिकृत सम्पत्ति को स्वीकार नहीं करे। ऐसी सम्पत्ति की सूचना तुरन्त राजा को प्रदान करे। अपरिग्रहाणुव्रत जैन आचार शास्त्रियों के अनुसार व्यक्ति जब तक सांसारिक वस्तुओं और उनसे उत्पन्न सुखों की आर उदासीनता की भावना नहीं लायेंगे तब तक नैतिक जीवन की शुरुआत नहीं हो सकती। इस प्रकार अपरिग्रह व्रत के लिए त्याग एवं निवृत्ति की भावना आवश्यक है।।98 स्पष्टत: यह व्रत मुनियों के लिए है, क्योंकि प्रवजित होने के पहले उन्हें अपनी सारी सम्पत्ति तथा धन को त्यागना होता है किन्तु भौतिक वस्तुओं को त्यागना तब तक सार्थक नहीं है जब तक उनका स्मरण होता रहे। चूंकि त्यागी हुई वस्तुओं का व्यक्ति के साथ सतत सम्पर्क रहा है अतएव उसकी स्मृति के सातत्य की संभावना बनी रहती है अत: तपस्वी को उनका स्मरण भी नहीं करना चाहिए।199 वस्तुतः अपरिग्रह धन और सम्पत्ति तक ही सीमित नहीं है। इस व्रत को जीवन के प्रति दृष्टिकोण अपनाने तक बढ़ाया जा सकता है। मनुष्य का अपने घर
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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