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________________ 92 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति 79. ब्राह्मण मुन्जते नित्यं नाथवन्तुश्च मुन्जते। तापसा मुन्जते चापि श्रमणाश्चैव मुन्जते ।। 1/14/121 80. अष्टाध्यायी, 2/1/70,781 81. उत्तराध्ययन, 2/3 तथा उत्तराध्ययन एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. 435-4531 82. धम्मपद, 26/ 13, थेरगाथा, 2461 83. द्र हिस्ट्री आफ इण्डियन लिट्रेचर, पृ. 6 1 84. मुनि नथमल, उत्तराध्ययन एक समीक्षात्मक अध्ययनः श्रमण संस्कृति के मतवाद, पृ. 26 271 85. कल्पसूत्र (एस. बी. ई. जि. 22) पृ. 206, 2811 86. द्र. हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. 11। 87. भागवतपुराण, पंचम स्कन्ध। 88. द्र. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. 12। 89. बर्हिषी तस्मिन्नेव विष्णुदत्त भगवान परमर्षिभिः प्रसादितो नामः प्रियचिकीर्षया तदवरोधायने मेरुदेव्यां धर्मान दर्शयितु कामो वातरशनानां श्रमणानां उर्ध्वमन्थिनां शुक्लया तत्वावततार । भागवतपुराण, 5/3/201 90. ऋग्वेद 10/136/2-31 91. द्र. पं. नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य का इतिहास, प्राक्कथन, पृ. 12-13। 92. गोविन्दराजीय भूषण टीका में श्रमण का अर्थ दिगम्बर किया गया है श्रमणाः दिगम्बराः श्रमणावातवसनाः इतिनिघन्टु | 93. द्र. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. 13-14। 94. भागवतपुराण, 5/6/121 95. पूर्वोक्त - 94, पृ. 131 96. मज्झिमनिकाय, 401 97- तैत्तिरीय आरण्यक जि. 1, यहीं पर उनके लिए वातरशना हवा ऋषभः श्रमणा उर्ध्वमन्थिनो—कह कर एक साथ वातरशन और श्रमण को रखा है। 2/7/1-2 98. श्रमणा वातरशना आत्म विद्या विशारदाः -श्रीमद्भागवत, 12/2/20 तथा श्रीमद्भागवत ब्रह्माख्यं धनं ते यान्ति शान्ताः संन्यासीनोअमला, वही, 11/6/47 99. केश्यग्नि केशी विषं केशी बिभर्ति रोद सी। केशी विश्वं स्वर्द शेकेशींद ज्योतिरुच्यते ॥ ऋग्वेद, 10/136/11 T 100. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 2, सू. 301 101. तिलोयपण्णति, 4/220 एवं तिलोयसार, 5901 102. उर्वरित - शरीर-मात्र-परिग्रह उन्मत्त इव गमन परिधान: प्रकीर्णकेशः आत्म न्यारोपित ध्वनीयो-ब्रह्मावर्तात् प्रवब्राज । जडान्ध - मूक बधिर पिशाचोभादकवद् अवधूत वेशो अभिभाष्यश्माणीअपि जनानां गृहितमोनवृतः तृष्णीं बभूव परागवलम्बमान कुटिल जटिल-कपिश, केशभूरी - भार: अवधूत - मलिन-निजशरीरेण गृहगृहीत इवादृश्यत। - प्रलम्बजटाभारभ्राजिष्णुः हरिवंशपुराण, 9/2041 - भागवत पुराण, 5/6/28-311 103. वातोद्धता जटास्तस्य रैजुराकुलमूर्तयः पद्मपुराण, 3/288 तथा स 104. ऋग्वेद, 10/102/61 105. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ. 161
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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