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________________ आगमकालीन धार्मिक एवं दार्शनिक विचार • 87 और कष्टों से भरा है। दूसरों को कष्ट देने वाले क्रूर पापी मृत्यु के पश्चात् अन्धेरे नर्क में जाते हैं और उसके पश्चात वह सिर झुका कर यातना स्थल पर जाते हैं।276 वह दण्ड देने वालों की आवाज सुनते हैं 'मारो, काटो, थूको, इसे जला दो।' नर्क के कैदी भय से अवसन्न हो जाते हैं। उन्हें यह भी मालूम नहीं होता कि किस दिशा में भागे।277 ___ ऐसे ऊष्ण स्थान पर मानो कोयले की भट्टी जल रही हो, उस पर जलते हुए वह जोर-जोर से आहत क्रन्दन करते हैं।278 पकाने के पात्र में जलती हुई अग्नि में पैरों को ऊंचा और सिर को नीचा कर उन्हें पकाया जाता है।279 महादावाग्नि, मद्र देश और वज्रबालुका तथा कदम्ब नदी के बालू में उनको जलाया जाता है तथा जलते हुए भूसे पर घुमाया जाता है।280 दण्डदाता चारों तरफ अग्नि जलाकर उन्हें इस प्रकार भूनते हैं मानों जिन्दा मछलियां आग पर हों और पापी छटपटाते हैं।281 इसके पश्चात् उनको गर्म-गर्म कीचड़ खिलाई जाती है तथा उनको भयानक कीड़े खाते हैं।282 फिर इन पापियों को लाल लोहे के समान दहकती भूमि पर चलाते हैं। वह भय से आर्तनाद करते हैं किन्तु उन्हें तीरों से भेद कर लाल गर्म जुए में फिर जोत दिया जाता है।283 फिर उन पापियों को जलती और फिसलती हुई भूमि पर नर्क के मन्त्री दासों के समान पीटते हुए लाते हैं।284 पापियों को संजीवनी नर्क में लाया जाता है जहां जीवन बड़ा होता है। जिस प्रकार अग्नि में पड़ा घी पिघलता है वही हालत पापी की होती है।285 भयंकर आक्रन्द करते हुए पापियों को गर्म और कलकल शब्द करता हुआ ताम्बा, लोहा, रांगा और सीसा पिलाया जाता है।286 वैतरणी नदी जिसकी लहरें उस्तरे के समान तीक्षण होती हैं, पापियों को तैर कर पार करनी पड़ती है। इसके किनारे तीरों से बने होते हैं, रुकने पर उन्हें भालों से छेदा जाता है।287 दण्डदाता, पापियों के पेट उस्तरे व चाकुओं से काट देते हैं। फिर उनके खण्डित शरीरों से वह बलपूर्वक पीठ की चमडी उघाड़ देते हैं।288 उनकी कोहनियों से उनकी बांहें निकाल लेते हैं, उनका मुंह खूब चौड़ा कर फाड़ देते हैं। उन्हें गाड़ी से बांधकर घसीटते हैं, फिर उसकी पीठ पर मुगदर की मार लगाते हैं।289 उन्हें वैतालिक नामक पर्वत पर लाया जाता है जहां उन्हें सहन घण्टों से भी अधिक तक सताया जाता है।290 नरक के कैदियों को संतक्षण (काटने) के स्थल पर लाया जाता है जहां क्रूर दण्डदाता उनके हाथ-पैर बांधकर लढे के समान कुल्हाड़ी से काटते हैं। उन्हें छेदते हैं तथा उनकी चमड़ी उतारी जाती है।292 उन्हें ऊख की भांति महायन्त्रों में पेरा जाता है।293 युग-कीलक जुए के छेदों में डाली जाने वाली लकड़ी की कीलों से युक्त जलते हुए लौह रथ में परवश बनाकर चाबुक और रस्सी के द्वारा हांका जाता है।294 कठोर चोंच वाले ढंक और
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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