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________________ 88 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति गीध पक्षियों से उन्हें कटवाया जाता है।95 उन्हें शिलाओं से कुचल कल सन्तापनी स्थल पर लाया जाता है।296 वह असूर्य लोक297 में लाये जाते हैं जो गहन अन्धकारयुक्त होता है जहां अग्नि में भूनने के पश्चात् उन्हें असियन्त्र महावन में लाया जाता है। जहां तलवार के समान तीक्ष्ण पत्तों से उन्हें छेदा जाता है।298 इस प्रकार मनुष्य लोक में जैसी वेदना है उससे अनन्त गुना अधिक वेदना नरक में है।299 उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार संसार रूपी कान्तार के चार अन्त होते हैं-नरक, तिर्यन्च, मनुष्य और देव।300 इसलिए इसे चारन्त चातुरन्त कहा जाता है। उस चातुरन्त में सात नरक हैं। पहले तीन नरकों में परमधार्मिक302 देवताओं द्वारा पीड़ा पहुंचाई जाती है और अन्तिम चार में नारकीय जीव स्वयं परस्पर वेदना की उदीरणा करते हैं। परमाधार्मिक देव 15 प्रकार के हैं। उनके कार्य भी भिन्न-भिन्न हैं नाम कार्य 1. अंब हनन करना, ऊपर से नीचे गिराना, बांधना आदि। 2. अंबर्षि काटना आदि। 3. श्याम फेंकना, पटकना, बींधना आदि 1 4. शबल आंते, फेफड़े, कलेजा आदि निकालना 5. रुद्र तलवार, भाला आदि से मारना, शूली में पिरोना आदि। 6. उपरुद्र अंग उपांगों को काटना आदि। 7. काल विविध पात्रों में पकाना। 8. महाकाल शरीर के विविध स्थानों से मांस निकालना। 9. असिपत्र हाथ, पैर आदि को काटना। 10. धनु कर्ण, ओष्ट, दांत को काटना। 11. कुम्भ विविध कुम्भियों में पकाना। 12. बालुक भंजना आदि। 13. वैतरणी वसा, लोही आदि को नदी में डालना। 14. खरस्वर करवत, परशु आदि से काटना। 15. महाघोष भयभीत होकर दौडने वाले नैरयिकों का अवरोध करना। निष्कर्षत: जैन आगमों में कुछ अलौकिक शक्तियों का परिचय जनसामान्य में नैतिकता के प्रसार हेतु दिया गया है ताकि वह सत्पथ पर चरित्र का आचरण करते रहें, पाप से भयभीत होकर वह दुष्कर्मों में प्रवृत्त न हों। इस भय से नरक की कल्पना को प्रश्रय मिला। पाप की यातना नियत नहीं है, अपितु कर्मों का फल है।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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