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________________ 86 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति हरिणेगमेषी हरिणेगमेषी नामक देव को इन्द्र की पदाति सेना का सेनापति पादातानीकाधिपति बताया गया है।265 इसी ने महावीर के गर्भ का परिवर्तन किया था।266 मथुरा के जैन शिलालेखों में भगवा नेमेसो कहकर उसका उल्लेख किया है। यक्ष यक्ष शब्द यज् धातु से बना है।267 आरम्भिक साहित्य में इसका अर्थ देव था। उत्तरवर्ती साहित्य में इसका अपकर्ण हो गया और यह निम्नकोटि की देवजाति के लिए व्यवहृत होने लगा।268 जैन सूत्रों के अनुसार जो व्यक्ति शील का पालन करते हैं वह यक्ष की योनि में उत्पन्न होते हैं।269 यक्ष, देव, दानव, गन्धर्व और किन्नर ब्रह्मचारियों को नमन करते हैं।270 आगमकाल में यक्षों की आराधना लोकप्रचलित थी। यह विश्वास प्रचलित था कि यक्ष प्रसन्न होकर शुभकार्यों में सहायता तथा अप्रसन्न होकर विनाशक कार्य करते हैं। यक्षों के आवास के लिए यक्षायतन बनाने की व्यापक परम्परा थी।27। यक्ष वृक्षों पर भी रहते थे तथा अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न होने के कारण शरीरगोपन भी कर सकते थे।272 सूत्रकृतांगसूत्र में पूतना नामक राक्षसी की चर्चा मिलती है, जिसे शाकिनी, गड्डारिका कहा जाता था।73 यह हमेशा युवकों की कामना करती थी। पुनर्जन्म का लौकिक विश्वास लौकिक विश्वास था कि काम भोगों से निवृत्त व्यक्ति शरीर छोड़ने पर देव होता है। देवलोक में वह श्रेष्ठ, ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण और आयु भोगता है।274 पाषण्ड शब्द प्रायः धार्मिक सम्प्रदाय के लिए प्रयुक्त होता था। जैन धर्म के अतिरिक्त जितने भी सम्प्रदायों की चर्चा जैनसूत्रों में हुई है उक्त मतान्तरों को लौकिक कहा गया है। मूलत: ये सम्प्रदाय अपने धर्म को ही लोकोत्तर धर्म मानते थे। इन धर्म सम्प्रदायों की आलोचना की गयी है और उनका उपहास किया गया है।275 नर्क की यातनाएं आगमों में नर्क की यातना का वर्णन मिलता है। क्रूरपापी जो सांसारिक जीवन की आसक्ति के वश पाप करते हैं, भयानक नर्क में जाएंगे जो अन्धकार
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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