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________________ छेदा भेदा जाय तब अलग हो जाते हैं और जब मिलाओ तो मिल जाते हैं। जैसे मिट्टी को सांचे में ढाला जाय तो उसका आकार सांचे जैसा हो जाता है और मिलाया जाय तो वह मिल भी जाती है और अलग किया जाय तो अलग भी हो जाती है। इसी प्रकार नारकी जीवों के तैजस-कार्मण शरीर तो मौजूद हैं और वैक्रिय शरीर के लिए जैसे पुद्गल होते हैं, वैसा शरीर बन जाता है। फिर उन पुद्गलों को जब परमाधामी देव अलग करते हैं तब वे बिखर जाते हैं और फिर मिल भी जाते हैं। अब गौतम स्वामी पूछते हैं हे भगवन्! असंहननी शरीर में बर्त्तने वाले नरक में जीव क्रोधी हैं, मानी हैं, मायी हैं, या लोभी है? इसके उत्तर में भगवान फरमाते हैं-हे गौतम! इस संबंध में सत्ताईस भंग जानने चाहिए। __ फिर गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन् । नारकी जीवों के संहनन नहीं है तो संस्थान-शरीर का आकार-तो होगा। तो उनके कौन-सा संस्थान है? भगवान् ने उत्तर दिया-हे गौतम! उनका शरीर दो प्रकार का होता है-एक भवधारणीय, दूसरा उत्तर वैक्रियक। जो शरीर भवपर्यन्त रहे वह भवधारणीय कहलाता है। नारकी जीव, दूसरे नारकी को कष्ट पहुंचाने के लिए कभी-कभी दूसरा शरीर धारण करते हैं, वह उत्तरवैक्रियक कहलाता है। प्रत्यक्ष देखा जाता है कि मनुष्य को जब तीव्र क्रोध होता है, तब वह अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर दूसरे को कष्ट पहुंचाने की कोशिश करता है। और जब एक मनुष्य ऐसा करता है तो सामने वाला भी प्रायः ऐसा ही करता है। इसी प्रकार नारकी जीवों में जब कषाय-समुद्घात का प्रबल उदय होता है, तब वे आपस में लड़ते हैं और क्रोधसमुद्घात के साथ वैक्रियसमुद्घात करके दूसरे को पीड़ा पहुंचाने के लिए दूसरा शरीर धारण करते हैं। जब एक नारकी ऐसा करता है तब दूसरा नारकी भी ऐसा ही करता है-अर्थात् वह भी अपने प्रतिपक्षी पर प्रहार करने के लिए उत्तरवैक्रियक शरीर धारण करता है इस प्रकार वे आपस में घात-प्रतिघात किया करते हैं __ आपको अभी नरक दिखाई नहीं देता, लेकिन यह लोक तो आप देख रहे हैं। अनाथी मुनि कहते हैं - अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नंदणं वणं।। अर्थात्-मेरी यह आत्मा ही वैतरणी नदी है, आत्मा ही कूट शाल्मलि वृक्ष है, आत्मा ही कामधेनु है, और आत्मा ही नन्दन वन है। तात्पर्य यह है कि समस्त सुखों और दुःखों का कारण आत्मा ही है। ५८ श्रा जवाहर किरणावला 88888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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