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________________ अनाथी मुनि की यह वाणी याद रक्खो। आत्मा इस लोक में नरक के दुःख उत्पन्न करता है, तभी वह नरक जाता है। अगर इस जन्म में आत्मा नरक के योग्य दुःख उत्पन्न न करे तो वह नरक भी न जावे। आज संसार जिस दुःख से घोर अशांति का अनुभव कर रहा है, वह कहां से आया है? वह मनुष्य के कषाय समुद्घात का ही फल है। आजकल जिसे विज्ञान या सुधार कहते हैं, उसके द्वारा संसार में दुःख बढ़ा है या सुख, उसने आत्मा के लिए स्वर्ग का सृजन किया है या नरक का निर्माण किया है, इस बात पर विचार करना चाहिए। उदाहरणार्थ एक वैज्ञानिक ने मनुष्यों का संहार करने वाली जहरीली गैस बनाई। उसने सोचा यह गैस प्रतिपक्षियों की नाक में घुस कर उन्हें मार डालेगी। इस वैज्ञानिक के पक्ष वालों ने इसे होशियार माना और राजा ने उसे मान दिया। लेकिन शास्त्र यह कहता है कि वैज्ञानिक कहलाने वाले इस पामर पुरुष ने नरक के अतिरिक्त और कुछ भी पैदा नहीं किया। क्योंकि इसका प्रतिपक्षी भी बेखबर न होगा। वह दूसरी तरह की गैस बनाने की बात सोचेगा, बल्कि वह इस गैस को भी मात देने वाली गैस का आविष्कार करने की चेष्टा करेगा। फिर वह अपनी गैस उस पर और वह इस पर उसका प्रयोग करेगा। यह नरक नहीं तो ओर क्या हुआ? लोगों ने तृष्णा के वशीभूत होकर यह मान लिया है कि हम जो कुछ करते हैं अच्छा ही करते हैं। लेकिन उनकी इस मिथ्या मान्यता से ही नरक की उत्पत्ति होती है। नरक में भी तो इसी प्रकार आपस में एक-दूसरे पर घात करने वाली लड़ाई होती है। नरक की संकुचित भूमि में घोर दुःख भोगने का साधन भी तो चाहिए न। इसीलिए नारकी वैक्रियसमुद्घात करते हैं और उत्तर–वैक्रिय शरीर धारण करके एक-दूसरे पर घोर प्रहार करते हैं। और यही बात आजकल के प्राणहारी गैस आदि बनाने वाले वैज्ञानिक भी करते हैं। आधुनिक विज्ञान की बदौलत हृदय का गुण-हृदय की मधुर और सहज संवेदना नष्ट हो गई है। और मारकाट के साधनों का निर्माण हुआ है। यह नरक की स्थिति नहीं तो और क्या है? सारांश यह है कि आत्मा अपने लिए इस भव में नरक पैदा करता है तभी वह मरने के पश्चात् नरक में जाता है। नास्तिक लोग नरक नहीं मानते तो न सही, लेकिन कम से कम यहां के प्रत्यक्ष नरक को तो देखें। एक आदमी ने यहां आयुभर मारकाट की और वह आराम में रहा। क्या उसे यह मारकाट का बदला नहीं भोगना पड़ेगा? कर्मशास्त्र की सत्यता के लिए उसे दूसरा जन्म धारण करना पड़ेगा और - भगवती सूत्र व्याख्यान ५७
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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