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________________ संक्षेप में इसका उत्तर यह है कि अगर तैजस और कार्मण शरीरों को वैक्रिय शरीर से अलग कर दिया जाय तो अस्सी भंग प्राप्त होंगे। जघन्य अवगाहना तैजस-कार्मण शरीर की अपेक्षा से है। इसीसे सत्ताईस भंग कहे हैं। वैक्रिय-रहित तैजस-कार्मण शरीर में अस्सी भंग मिलेंगे। अतएव भगवान् ने कहा है कि तीनों शरीर साथ ही हैं। यह चर्चा केवल तैजस-कार्मण शरीर की नहीं है, किन्तु वैक्रिय सहित तैजस-कार्मण की है। इसलिए सत्ताईस ही भंग मिलेंगे। यही सूचित करने के लिए तीनों शरीरों के संबंध में जानना चाहिए, ऐसा कथन किया गया है। शरीर होने पर संहनन भी होता है। शरीर की हड्डियों का ढांचा संहनन कहलाता है। शरीर होगा तो हाड़ भी होंगे, मांस भी होगा, ऐसा हम लोग प्रत्यक्ष में देखते हैं। इसलिए गौतम स्वामी ने संहनन के विषय में प्रश्न किया है। वे पूछते हैं-भगवन्! छह प्रकार के संहननों में से किस संहनन में नारकी जीवों का शरीर वर्तता है? अर्थात् नारकी जीवों के कौनसा संहनन होता है? भगवान् उत्तर देते हैं-गौतम! नरक के जीव छह संहननों में से कोई भी संहनन नहीं पाते। __साधारण धर्मशास्त्र का विद्यार्थी भी यह जानता है कि नारकी जीवों की कोई संहनन नहीं होता। फिर क्या गौतम स्वामी जैसे महान् ज्ञानी पुरुष यह बात नहीं जानते थे? अगर वे जानते थे तो भगवान् से पूछने का उद्देश्य क्या है? नरक के जीवों के दुःख का वर्णन करते हुए शास्त्रकारों ने कहा है कि परमाधामी असुर, नरक के जीवों के खंड-खंड करते हैं। इस कथन पर यह संदेह किया जा सकता है कि शरीर के खंड-खंड हो जाने पर भी नारकी किस प्रकार जीवित रहते हैं? वे मर क्यों नहीं जाते? खंड-खंड होने पर उनकी हड्डियां भी टूट जाती होंगी, फिर भी वे जीवित कैसे बचते हैं? उनकी मौत नहीं होती, जितनी आयु है, वह अवश्य भोगनी पड़ती है, तो उनके शरीर का खंड-खंड केसे हो जाता है? इस संदेह का निवारण करने के लिए ही गौतम स्वामी ने भगवान से यह प्रश्न किया है। भगवान ने गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में फरमाया है कि नरक के जीव असंहननी हैं। उनके शरीर में हाड़, मांस, रक्त या नसें नहीं होती। प्रश्न हो सकता है, जिसमें हाड़, मांस, रक्त या नसें नहीं है, वह शरीर ही कैसा? इसका उत्तर यह है कि जो पुद्गल, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ अमनोज्ञ और अमनोम होते हैं, वे नारकी जीवों के शरीर रूप में परिणत होते हैं। उन पुद्गलों की यह तासीर है कि जब उन्हें - भगवती सूत्र व्याख्यान ५५
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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