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________________ भी नहीं है। अब इस दूसरे आदमी से पूछा गया कि इस कोठरी में कुछ नहीं है, इसके लिए तुम्हारे पास क्या प्रमाण है ? तब उसने कहा अगर कुछ होता तो दिखाई देता। कुछ दिखाई नहीं देता, इस कारण कुछ भी नहीं है। मगर यह कैसे मान लिया जाय कि वास्तव में कोठरी में कुछ नहीं है। कोठरी में भीतर जाकर देखा नहीं, फिर उसे सूनी किस प्रकार कह सकते हैं? जो आदमी उसमें धन बतलाता है उस के पास तो प्रमाण हैं। उसके बाप-दादा बही में लिख गये हैं कि अमुक कोठरी में इतना धन है लेकिन जो कहता है कि इसमें कुछ नहीं है, उसके पास क्या प्रमाण है? उसका कथन तो सर्वथा निराधार और मनःकल्पित ही है। इसी प्रकार स्वर्ग-नरक हैं, यह बात तो शास्त्रों में लिखी हुई है लेकिन स्वर्ग-नरक नहीं हैं, इस बात को सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है। गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने सात पृथ्वी बतलाई और कहा-पहली पृथ्वी का नाम रत्नप्रभा है। दूसरी शर्कराप्रभा, तीसरी बालुकाप्रभा, चौथी पंकप्रभा, पांचवी धूम्रप्रभा, छठी तमःप्रभा और सातवीं तमस्मतः प्रभा है। पहली पृथ्वी एक राजू लम्बी-चौड़ी और एक राजू गहरी है। दूसरी पृथ्वी दो राजू गहरी है। इस प्रकार सातवीं पृथ्वी सात राजू लम्बी-चौड़ी और एक राजू गहरी है। सातों पृथ्वी एक के ऊपर एक पुड़ की तरह सुधर्म देवलोक और नवग्रैवेयक तक चली गई हैं। लोक का नक्शा पुरुषाकार है। उस पुरुषाकार लोक के नक्शे की गर्दन को ग्रैवेयक कहते हैं। ____ मैंने अहमदनगर के वकील से पूछा-आप पृथ्वी को गोल बतलाते हैं लेकिन इसके नीचे क्या है? वकील बोले-कुछ होगा! तब मैंने कहा-आप तो कुछ होगा ही कहते हैं और हम कहते हैं-पृथ्वी के नीचे नरक है; तो ऐसा मान लेने में क्या बाधा है? आपको भूगोल-खगोल से जैन शास्त्र को मिलाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे व्यवहार की पुस्तकें हैं और यह धर्म शास्त्र हैं। पहली पृथ्वी का नाम रत्नप्रभा है। हम लोगों को जो पृथ्वी दिखाई देती है, वह भी रत्नगर्भा कहलाती है। जिसके गर्भ में रत्न हो, उसे रत्नगर्भा कहते हैं। स्त्री के गर्भ में जब कोई महापुरुष आया होता है तो उसे रत्न-कुंखधारिणी कहते हैं। इसी प्रकार इस पृथ्वी में भी ऐसे-ऐसे रत्न हैं कि उनका पार नहीं। जैन शास्त्रों में रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन हिस्से किये हैं-रत्नकाण्ड, जलकाण्ड और पंककाण्ड । रत्नकाण्ड में नरकावास की जगह छोड़कर दूसरी जगह अनेक रत्न होते हैं, जिनकी प्रभा पड़ती रहती है। इस कारण पहली १४ श्री जवाहर किरणावली. 99999999999999999999999999
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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