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________________ राजा अपने राज्य के घरों की गणना करता है, उसी प्रकार आगे पृथ्वी पर के घरों की गणना भी बतलाई जायेगी। छोटे-से राज्य का स्वामी अपने छोटे राज्य के घरों की गणना करता है, परन्तु भगवान् समस्त लोक के स्वामी हैं, अतः वे सारे संसार के घरों की गणना करेंगे। सिद्धशिला की पृथ्वी आठवीं है लेकिन भगवान् ने उस पृथ्वी की विवक्षा न कर के सात ही पृथ्वियां बतलाई हैं। यहां यह प्रश्न हो सकता है कि पृथ्वी एक ही है और लौकिक भूगोल शास्त्र भी एक ही पृथ्वी बतलाता है, फिर सात पृथ्वियां कैसे कही गई हैं ? मगर लौकिक भूगोल शास्त्र का यह वर्णन अगर सत्य होता तो गौतम स्वामी को भगवान से यह प्रश्न करने की आवश्यकता न होती। प्रचलित भूगोल की बात असत्य होने के कारण ही तो गौतम स्वामी को सर्वसाधारण की भ्रमणा मिटाने के लिए यह प्रश्न पूछना पड़ा है। इसी कारण भगवान् ने उत्तर भी दिया है कि पृथ्वियां सात हैं। इनमें से एक प्रत्यक्ष है और छह अप्रत्यक्ष हैं। चौदह राजू लोक का जैन शास्त्र में बहुत वर्णन है। अन्य लोगों ने भी चौदह राजू लोक को भुवन-तबक आदि के नाम से स्वीकार किया है। चौदह राजू लोक को तुलसीदासजी ने चौदह भुवन मानकर कहा है : चौदह भुवन एक पति होई। चौदह राजू लोक के नक्शे में क्रम से सात पृथ्वियां बतलाई हैं। उनमें से हम लोग केवल एक पृथ्वी देख सकते हैं, शेष नहीं। अहमदनगर में एक जैन वकील हैं। अब तो वे जैन धर्म को सर्वोत्कृष्ट मानते हैं परन्तु जब वे कॉलेज से नये-नये निकले थे, तब जैनधर्म को कुछ समझते ही नहीं थे। जब उन्होंने सूयडांग सूत्र का अध्ययन किया, तब कहने लगे सूयडांग में जैसा उत्कृष्ट उपदेश है वैसा अन्यत्र हो नहीं सकता। उन वकील ने एक बार मुझ से पूछा-यदि स्वर्ग-नरक न मानें तो क्या हानि है ? स्वर्ग-नरक दिखाई नहीं देते, इसी कारण ऐसा प्रश्न करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। मैंने उन्हें उत्तर दिया-तो क्या आप यह देख चुके हैं कि स्वर्ग-नरक नहीं है? अगर नहीं देखा तो कैसे कह सकते हैं कि स्वर्ग-नरक नहीं है? बिना देखी चीज तो आप मानना नहीं चाहते? स्वर्ग-नरक का अस्तित्व प्रकट करने वाले प्रमाण तो हम बतलाते भी हैं, लेकिन उनका अभाव सिद्ध करने के लिए आपके पास क्या प्रमाण है? एक बंद कोठरी के विषय में एक आदमी कहता है- इस कोठरी में एक तिजोरी है, जिसमे लाख रुपये का माल है। दूसरा उसी के सम्बन्ध में कहता है-इस कोठरी में कुछ - भगवती सूत्र व्याख्यान १३
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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