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________________ हों लेकिन उनका हृदय तो काम-क्रोध-युक्त ही है। इसके अतिरिक्त बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी जड़ प्रकृति के सम्पूर्ण रहस्यों को नहीं जानता। जड़ प्रकृति को जानने में भी अभी उसे न मालूम कितना समय लगेगा। और कौन कह सकता है कि वह कभी पायेगा या हमेशा ही उसके लिए जानना शेष रहेगा । जब जड़ प्रकृति की यह बात है तो सूक्ष्मतम आत्मा तो बड़ी दूर की बात है । यह यंत्रों की पकड़ में नहीं आती, दूरबीन से भी वह दूर ही रहती है। इसलिए लाख प्रयत्न करके भी वैज्ञानिक अपने यंत्रों की सहायता से आत्मा को प्रत्यक्ष नहीं कर सकता । आत्मा के प्रत्यक्ष के लिए तो यंत्रों को तोड़ फोड़ कर फेंक देना होगा और देह में रहते हुए भी देहातीत दशा प्राप्त करनी होगी तभी आत्मा का उज्ज्वल प्रकाश आविर्भूत होगा और उसी प्रकाश में आत्मा साक्षात्कार हो सकेगा। इस प्रकार आत्मा साक्षात्कार करने वाला महान् वैज्ञानिक ही हमारा पथ प्रदर्शक हो सकता है। हमें आत्मोन्नति करनी है। एक मात्र आत्म-विकास ही हमारे जीवन का परम और चरम ध्येय है। काम-क्रोध वालों की बात हमारे उद्देश्य की पूर्ति में सहायक नहीं हो सकती । आधुनिक विज्ञान से भोगोपभोग में वृद्धि भले ही हो जाय लेकिन आत्मोन्नति नहीं हो सकती । अतएव सर्वज्ञों की कही बात में सन्देह करने का कोई कारण नहीं है कि पृथ्वीकाय से निकल कर जीव मनुष्य होता और पूर्णता प्राप्त करता है। अपनी पिछली पीढ़ी से स्वाभाविक प्रेम होता है। भाट से अपने पूर्वजों की नामावली और गौरवगाथा सुनकर किसका हृदय हर्ष से नहीं नाचने लगता? यह संसार का नियम है ऐसी अवस्था में जिन पृथ्वीकाय के जीवों अर्हन्त निकले हैं, उन पृथ्वीकाय के जीवों पर कितना प्रेम होना चाहिए? टीकाकार कहते हैं - मैंने अपनी तरफ से तो यह साक्षी दी ही है कि पृथ्वी का और पूर्ण पुरुष का संबंध है, अतएव इस पांचवें उद्देशक में पृथ्वी का वर्णन किया है लेकिन एक साक्षी शास्त्र की भी है। पहले शतक के आरंभ में जो संग्रह गाथा कही गई है, उसमें यह उल्लेख किया गया है कि पांचवें उद्देशक में पृथ्वी संबंधी प्रश्नोत्तर किये गये हैं । श्री गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर फरमाते हैं- पृथ्वी सात कही गई हैं। यद्यपि पृथ्वीयां आठ भी मानी गई हैं, लेकिन गौतम स्वामी के प्रश्न का जो अभिप्राय है, उसे जानकर भगवान् ने सात ही बतलाई हैं, क्योंकि आगे गौतम स्वामी पृथ्वी सम्बन्धी और आन्तरिक प्रश्न भी पूछेंगे । जिस प्रकार श्री जवाहर किरणावली १२
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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