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________________ उत्तर-हे गौतम! कोई उत्पन्न होता है, कोई नहीं उत्पन्न होता। प्रश्न-भगवन्! इसका क्या कारण है? उत्तर-हे गौतम! वही संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव वीर्यलब्धि द्वारा, वैक्रियलब्धि द्वारा, शत्रु की सेना आई सुन कर, अवधारण करके, आत्मप्रदेशों को गर्भ से बाहर के भाग में फेंकता है, फैंक कर वैक्रिय समुद्घात से समवहत हो, चतुरंगी सेना की विक्रिया करता है, चतुरंगी सेना की विक्रिया करके उस सेना से शत्रु की सेना के साथ युद्ध करता है। और वह अर्थ का कामी, राज्य का कामी, भोग का कामी, काम का कामी, अर्थ में लंपट, राज्य में लंपट, भोग में लंपट तथा काम में लंपट, अर्थ का प्यासा, राज्य का प्यासा भोग का प्यासा और काम का प्यासा, जीव, उन्हीं में चित्त वाला, उन्हीं में मन वाला, उन्हीं में आत्मपरिणाम वाला, उन्हीं में अध्यवसित, उन्हीं में प्रयत्न वाला, उन्हीं में सावधानता वाला, उन्हीं के लिए क्रियाओं का भोग देने वाला और उन्हीं के संस्कार वाला, उसी समय मृत्यु को प्राप्त हो तो नरक में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम! यावत्-कोई जीव नरक में जाता है और कोई नहीं जाता। प्रश्न-भगवन्! गर्भ में रहा जीव देवलोक में जाता है? उत्तर-हे गौतम! कोई जीव जाता है, कोई नहीं जाता है। प्रश्न-भगवन्! इसका क्या कारण है? उत्तर-हे गौतम ! संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पूर्ण तथा रूप श्रमण या माहन के पास एक भी धार्मिक और आर्य वचन सुनकर, अवधारण करके, तुरन्त ही संवेग से धर्म में श्रद्धालु बनकर, धर्म के तीव्र अनुराग में रक्त होकर, वह धर्म का कामी, पुण्य का कामी, स्वर्ग का कामी, मोक्ष का कामी, धर्म में आसक्त, पुण्य में आसक्त, स्वर्ग में आसक्त, मोक्ष में आसक्त, ६ र्म का प्यासा, पुण्य का प्यासा, स्वर्ग और मोक्ष का प्यासा, उसी में चित्त वाला, उसी में मन वाला, उसी में आत्मपरिणाम वाला, उसीमें अध्यवसित, उसी में तीव्र प्रयत्न वाला, उसी में सावधानता वाला, उसी के लिए क्रियाओं का भोग देने वाला और उसी संस्कार वाला, जीव ऐसे समय में मृत्यु को प्राप्त हो तो देवलोक जाता है। इसलिए हे गौतम! कोई जीव देवलोक में जाता है, कोई नहीं जाता। व्याख्यान गर्भस्थ बालक का शरीर माता-पिता के शरीर से ही बनता है, यह बात नास्तिक अपने पक्ष के समर्थन में घटाने की चेष्टा करते हैं। इसलिए २२४ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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