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________________ गौतम स्वामी फिर प्रश्न करते हैं-भगवन्! गर्भ में रहा हुआ जीव मर कर क्या . नरक में जाता है? अपने देखने में और नास्तिकों की समझ में तो गर्भ का बालक मां-बाप के विकार के सिवा और कुछ नहीं है। ज्ञानी भी यही कहते हैं कि गर्भ का बालक मां-बाप का विकार रूप ही है, परन्तु यह बात सिर्फ शरीर के संबंध में ही समझनी चाहिए। गर्भस्थ बालक का आत्मा तो स्वतंत्र ही है, वह पूर्वभव से आया है और उत्तर भव करेगा। , गौतम स्वामी ने जो प्रश्न किया है, उसका आशय यह है कि गर्भ का जीवन अज्ञान-अवस्था में पड़ा हुआ है और गर्भ के कारागार में बंद है। बिना पाप किये कोई जीव नरक में नहीं जाता। फिर नरक का जीव नरक में कैसे जा सकता है, क्योंकि वह पाप नहीं करता। गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम ! सब जीव समान नहीं हैं। कोई जीव गर्भ में ही मर कर नरक में जाता है और कोई जीव नरक में नहीं जाता। रही अज्ञान अवस्था की बात, सो राजकीय कानून में भी यह प्रश्न उठता है मगर राजकीय कानून अपूर्ण है। उसे प्रमाण भूत मानकर तत्त्व का निर्णय नहीं किया जा सकता। वास्तव में अज्ञान और सज्ञान अवस्थाएं उम्र पर निर्भर नहीं हैं। कई लोग जवानी में भी बालक से ज्यादा अज्ञान मुक्त होते हैं और कई जीव बाल्यावस्था में ही ज्ञानियों को भी मात कर देते हैं। छोटी उम्र वाले को अज्ञान और बड़ी उम्र वाले को सज्ञान मानना संसार का कायदा है, परन्तु प्रकृति का कायदा अलग है। अतिमुक्त मुनि, जब छह वर्ष के बालक थे, तब भी उन्होंने अपनी माता से जो-जो बातें कहीं, उनका उत्तर वह नहीं दे सकी। पुराण में देखो तो पुराण के अनुसार ध्रुव छह वर्ष के ही थे, और नारद की अवस्था कितनी थी सो कुछ पता नहीं फिर भी ध्रुव ने नारद की बातों का जो उत्तर दिया, उसे सुन कर नारद दंग रह गये। ध्रुव बहुत छोटे थे, छह वर्ष के ही थे, नाबालिग थे। इस अवस्था में उन्हें अज्ञान कहा जाय या सज्ञान कहा जाय? एक जगह लिखा है कि जब छह वर्ष के थे, तभी शुद्ध संस्कृत भाषा बोलते थे। ऐसी हालत में कुदरत के कायदे को क्या कहा जाय? किस अवस्था वाले को सज्ञान कहें और किस अवस्था वाले को अज्ञान कहें? इसलिए ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि नरक में सज्ञान जीव ही जाता है, मगर सज्ञान-अज्ञान की कसौटी उम्र से नहीं बनाई जा सकती। - भगवती सूत्र व्याख्यान २२५
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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