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________________ हिंसा के समय हृदय में कैसी लहर आती है और अहिंसा के समय क्या लहर उत्पन्न होती है, यह जरा, अन्तर्दृष्टि से देखो। अहिंसा की भावना हृदय को आनन्द की तरंगों से भर देती है। वह आनन्द दूसरे के लिए नहीं, वरन् स्वयं अहिंसक के लिए है। अहिंसक ही उसका उपभोग करता है। इसके विरुद्ध, हिंसा से दुःख की लहर आती है और वह हिंसक को ही भोगना पड़ता कहा जा सकता है कि कभी-कभी किसी-किसी को हिंसा करने में ही आनन्द आता है। मगर यह धारणा भ्रममय है। रात में कुत्ते भौंकते हैं और आपकी नींद में विघ्न डालते हैं। आप उन्हें रोकना चाहें तो भी वे नहीं रुकते। उनका भौंकना आपको बुरा लगता है, लेकिन वे भौंकने में ही आनन्द मानते हैं। आपकी दृष्टि में उनका आनन्द मानना, वास्तव में आनन्द हैं या भ्रम है? 'भ्रम है।' इसी प्रकार जो लोग मार-काट में आनन्द मानते हैं, उन्हें भूला–भटका समझो। जो हिसाब कुत्तों के लिए लगाते हो, वही अपने लिए क्यों नहीं लागू करते? भूल से जिसमें आनन्द माना जाता है, वास्तव में वह आनन्द नहीं है। प्राण जीवन की एक अनिवार्य वस्तु का नाम है, जिससे प्राणी जीवित रहता है। आत्मा का नाश नहीं है, किन्तु प्राणों का नाश अवश्य है। प्राणों का नाश करना ही हिंसा या प्राणातिपात क्रिया है। प्राणातिपात क्रिया, जीवहिंसा या आत्मघात कहलाती है, परन्तु यह व्यवहार की बात है। वास्तव में आत्मा का नाश होता ही नहीं है। किसी का धन जाने पर वह मर नहीं जाता, लेकिन कहता है कि मेरा प्राण चला गया। अर्थात् धन उसे प्राणों के समान प्रिय था। वह धन को जीवन का आधार मानता था। जीवन के आधार के जाने से प्राण जाने के समान दुःख होता है। इसलिए धनहरण की क्रिया को शास्त्रकार हिंसा कहते हैं केवल धन हो नहीं, किन्तु कोई भी वह वस्तु, जो प्राणी को प्रिय है, उसे प्राणी से अलग कर देना-प्राणी का उससे वियोग करा देना इसे हम प्राण हिंसा कहते हैं। - जीव को धन क्यों प्रिय लगता है? इसलिए कि वह धन को प्राणों का आधार मानता है। पत्थर और सोना-दोनों ही जड़ हैं। मगर पत्थर के जाने पर उतना दुःख न होगा, जितना अपना माने हुए सोने के चले जाने पर होगा। क्योंकि सोने से प्राणी अपना जीवन सुख से बीतना मानता है। उस सोने से उसकी गर्ज पूरी होती है। अगर स्वर्ण से प्राणी की गर्ज पूरी न होती हो तो प्राणी को उस पर ममता ही न होती। इसी प्रकार और वस्तुएं-जो प्राणी - भगवती सूत्र व्याख्यान ११३ &000000002388888
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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