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________________ तुम अपने को ही मारने के लिए हाथ उठा रहे हो! और तुम दूसरों की रक्षा के लिए हाथ बढ़ाते हो तो अपने लिए शान्ति का सागर भरते हो। तुम स्वयं अपनी रक्षा करते हो। - बहुत से लोगों का यह ख्याल है कि आजकल के जमाने में इस प्रकार की विचारधारा आत्मघातक है। इससे दुनिया का काम नहीं चलता। यहां तो थप्पड़ के बदले घूसा लगाने से ही काम चलता है। मगर गंभीरता से विचार करने पर अवश्य प्रतीत होगा कि उक्त ख्याल भ्रमपूर्ण है। लोगों को झूठा विश्वास हो गया है। आज भी क्या ऐसे पुरुषों का सर्वथा अभाव है जिन्होंने विशुद्ध प्रेम द्वारा अपने विरोधियों पर भी विजय प्राप्त की है ? नहीं। धर्मस्थानक में, हृदय जैसा कोमल हो जाता है, वैसा ही कोमल अन्यत्र भी बना रहे-वह कोमलता जीवनव्यापिनी बन जाय, स्वभाव में दाखिल हो जाय तब काम चलता है। इसलिए बुद्धि लगाकर देखो कि जीव को मारना अच्छा होता है या जीव को बचाना? अगर तलवार का जवाब तलवार से और थप्पड़ का उत्तर थप्पड़ से देने पर शान्ति हो जाती तो संसार में अशान्ति का नाम-निशान न रहता। अनादि काल से संसार में शस्त्र संग्राम चल रहा है, अब तक तो कभी की शान्ति स्थापित हो गई होती। हिंसा के बदले प्रतिहिंसा करने से गुलामी के बंधन में पड़ना पड़ता है। आज अगर किसी से पूछो तो एक ही स्वर में उत्तर मिलेगा कि संसार लड़ाई से घबड़ाया हुआ है। युद्ध और संहार के नये-नये साधन निकाले जा रहे हैं। फिर भी शान्ति नहीं हुई, वरन् अशान्ति बढ़ती ही जाती है। बहुत से लोग इस तथ्य का अनुभव कर रहे हैं, मगर चिरकालीन संस्कारों के कारण वे अपना पथ नहीं बदल सकते। अगर हिंसा से ही संसार का काम सुविधापूर्वक चलता होता तो आज आपका अस्तित्व संसार में दिखाई न देता। अगर आपकी माता ने आपको मारा ही मारा होता तो आपकी क्या दशा होती? बाह्य दृष्टि से भी देखिये, तभी प्रतीत होगा कि यह संसार-संसार के आधार पर ही टिका हुआ है। अगर पूर्णरूपेण अहिंसा को अपना लिया जाय तो संसार में लड़ाई-झगड़ा रह ही नहीं सकता। __ इस प्रकार तुम अपने आप ही संसार से बंधे हो। दूसरा कोई भी तुम्हें नहीं बांध सकता। आत्मा स्वयं ही कर्ता और भोगता है। गीता में भी कहा है-'उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानम्' अर्थात् अपने द्वारा ही अपना उद्धार करना चाहिए-आत्मा ही आत्मा का उद्धार कर सकता है। ११२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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