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________________ को सुख देने में सहायक होती है, जैसे घर या कपड़ा आदि कोई नष्ट कर दे, तो इससे प्राणी को दुःख होता है। क्योंकि घर का तोड़ना अर्थात् उसके प्राणों का आधार तोड़ना है। प्राणी कपड़े से जीता ही नहीं है, वरन् कपड़े को वह प्राणों का आधार मानता है अतएव उसके कपड़े को फाड़ देने से भी उसे दुःख होगा। इसलिए यह भी हिंसा है। मतलब यह है कि प्राणों को या प्राणों के लिए प्रिय किसी वस्तु को नष्ट कर देना हिंसा है। जब प्राणों की आधारभूत मानी हुई वस्तु का नाश कर देना भी हिंसा है तो जिस प्राण के होते वह वस्तु प्रिय लगती है, उस प्राण का नाश करना क्या हिंसा न होगा? अवश्य ही महाहिंसा है। इस प्रकार प्राणों के नाश करने की क्रिया को ही प्राणातिपात क्रिया कहते हैं। गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन्! यह प्राणातिपात क्रिया एक दूसरे का स्पर्श होने पर लगती है या बिना स्पर्श हुए ही? भगवान् ने उत्तर दिया-गौतम! स्पर्श होने पर ही यह क्रिया लगती है। यहां यह पूछा जा सकता है कि किसी प्राणी का मकान नष्ट करने में हिंसा लगती है, लेकिन मकान नष्ट करते समय प्राणी का स्पर्श नहीं होता। ऐसी स्थिति में यह बात कैसे लागू हो सकती है कि स्पर्श होने पर ही प्राणातिपात क्रिया लगती है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि स्पर्श तीन प्रकार से होता है-मन से, वचन से और काय से। किसी ने मन के प्रयोग से किसी प्राणी को मार डाला और काय से उसका स्पर्श नहीं किया, तो क्या उसे हिंसा नहीं लगेगी? मन से उस प्राणी को मार डालने का संकल्प हुआ, इस कारण मानसिक स्पर्श हुआ और उसे क्रिया लगी। यह तो शास्त्रीय समाधान हुआ। विज्ञान से भी यह बात सिद्ध की जा सकती है। जैन धर्म में एक लेश्या सिद्धान्त है। योग और कषाय की एकता होने पर कषाय से अनुरंजित योग की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। शास्त्रकारों ने कषाय आदि समुद्घातों का भी निरूपण किया है। कषाय का भी समुद्घात होता है। ___एक अंग्रेजी भाषा की पुस्तक देखने में आई थी, जो आधुनिक विज्ञान के आधार पर लिखी गई है। उसमें कषाय आदि कुछ चित्र भी थे। उसमें बतलाया गया था कि जब किसी व्यक्ति को, किसी पर क्रोध उत्पन्न होता है तब क्रोधी के शरीर से छुरी, कटार, तलवार आदि शस्त्रों के आकार के पुद्गल निकलते हैं। उन पुद्गलों का रंग लाल होता है। कहावत प्रचलित ११४ श्री जवाहर किरणावली -
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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