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________________ मुंह से ही अपनी महत्ता प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। वास्तव में भगवान् ने जिस तीर्थ को 21 हजार वर्ष पर्यन्त चालू रहना बतलाया है वह साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ ही है। ___भगवान् ने शास्त्र में जिस सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र रूप तीर्थ की स्थापना की है, वह अविनश्वर है। ज्ञान, दर्शन, चरित्र का कभी नाश नहीं होता। ऐसी अवस्था में उसके इक्कीस हजार वर्ष तक विद्यमान रहने की बात शास्त्रसंगत नहीं कही जा सकती। जब प्रवचन रूपी तीर्थ अविनाशी है तो इक्कीस हजार वर्ष तक स्थिर रहने वाला तीर्थ चतुर्विध संघ ही हो सकता है। अतः तेरापन्थ स्थापक की अपने आप ही पच्चीसवां तीर्थंकर बनने की चेष्टा उपहासास्पद है। अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रवचन किसे कहते हैं ? इसका उत्तर यह है कि वचन और प्रवचन में पर्याप्त अन्तर है। साधारण बोलचाल को वचन कहते हैं। इसके तीन भेद हैं-एक खास वचन, दूसरा विवेक वचन और तीसरा विकल वचन। तथ्यहीन वचन विकल वचन कहलाते हैं। अपनी शक्ति से तोल मोल कर बोलना विवेक वचन है और साधारण बोलचाल को खास वचन कहते हैं। ज्ञानी पुरुष अपने निर्मल ज्ञान से वस्तु-स्वरूप को यथार्थ रूप में जान कर, संसार के कल्याण के लिए जो उपदेश वचन बोलते हैं, वही वचन 'प्रवचन' कहलाते हैं। न्यायाधीश (जज) अपने घर पर अपनी स्त्री आदि से बातचीत करता और न्यायासन पर बैठ कर, वादी-प्रतिवादी की बातें सुनकर, अपने ज्ञान से निर्णय करके फैसला देने के लिए भी बोलता है। यद्यपि वचनों का उच्चारण दोनों जगह सदृश है, फिर भी न्यायालय में बोले जाने वाले वचनों में शक्ति है। उन में हानि-लाभ भरा हुआ है। अतएव उसके उन वचनों को फैसला कहते हैं। फैसले में आये हुए शब्द मिसल का सार हैं। इसी प्रकार जगत् के लाभ के लिए ज्ञानवान् महात्माओं ने अपने ज्ञान के सार रूप में जो वचन प्रयोग किया है उसे प्रवचन कहते है। जैसे फैसले में फांसी कटती है, उसी प्रकार भगवान् के प्रवचन से संसार की फांसी कटती है। संसार की फांसी काटने वाले वचन को प्रवचन कहते हैं। फैसले में और प्रवचन में कुछ अन्तर भी है और वह यही कि फैसला कभी सदोष भी हो सकता है, उससे कभी फांसी सजा भी मिलती है, मगर प्रवचन एकान्त रूप से फांसी काटने वाला ही होता है। ऐसे प्रवचन की स्थापना करने वाले को तीर्थंकर कहते हैं। ५८ श्री जवाहर किरणावली 888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888888
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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