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________________ की और उच्च श्रेणी की थी। इस कारण भी उन्हें महावीर कहा जा सकता नाम दो प्रकार के होते हैं। एक तो जन्म के समय गुण या प्रयोजन को लक्ष्य करके नाम रक्खा जाता है और दूसरा अमुक प्रकार के विशिष्ट पराक्रम आदि गुणों को देखकर संसार नाम देता है। भगवान् ‘महावीर' नाम जन्म-सिद्ध नहीं है। देवों ने बाद में यह नाम रक्खा है। भगवान् का जन्म-नाम 'वर्द्धमान' था। देवों ने यह नाम क्यों दिया, इस संबंध में आचारांग सूत्र में और कल्पसूत्र में कहा है'अयले भय-भेरवाणं, खंतिखमे परिसहोवसग्गाणं देवेहिं कए महावीरेत्ति।। अर्थात्-बिजली आदि द्वारा होने वाले आकस्मिक भय से तथा सिंह आदि हिंसक पशुओं की गर्जना तथा देव आदि के अट्टहास्य आदि से उत्पन्न होने वाले भैरव (भय) से विचलित नहीं हुए, भय-भैरव में सुमेरु की तरह अचल रहे, घोर से घोर परिषह और उपसर्ग आने पर भी क्षमा का त्याग नहीं किया, इस कारण इन गुणों को देख कर देवताओं ने भगवान् वर्द्धमान का नाम 'महावीर' रख दिया। ___ आत्मा में बसने वाले और आत्मा का बिगाड़ करने वाले काम, क्रोध आदि दुर्जय रिपुओं को जीतने वाला महावीर कहलाता है। इससे यह सिद्ध है कि मनुष्य रूपी शत्रुओं को जीतने के कारण नहीं मगर अन्तरंग शत्रुओं को जीतने के कारण भगवान् का यह नाम प्रसिद्ध हुआ था। मनुष्यों को तो उन्होंने कभी शत्रु समझा ही नहीं था। कहा जा सकता है कि साधु अपनी मण्डली में बैठ कर अपनी बड़ाई कर लेते हैं। मगर इन बातों की सत्यता का प्रमाण क्या है? इस सम्बन्ध में एक उदाहरण दिया जाता है। एक सेनापति साधुओं के समीप बैठा था। साधुओं ने साधुता की प्रशंसा करते हुए कहा-'वीर पुरुष ही साधु हो सकता है। सेनापति ने कहा- इसमें प्रशंसा की क्या बात है? आप अपने मुँह से अपनी बड़ाई कर रहे हैं। अगर आप हाथ में तलवार लें तो पता चले कि वीरता किसे कहते हैं? आप साधुओं को वीर बतलाते हैं, पर जहां तलवारों की खटाखट होती है वहां साधु नहीं ठहर सकता। सेनापति की बात सुनकर साधु हंस दिये। उन्होंने कहा-सेनापति! जल्दी जोश में आ जाने से सच्ची बात समझ में नहीं आती। शान्तिपूर्वक विचार करो तो साधुओं की वीरता का पता चल जायेगा। अगर एक आदमी अकेला ही दस हजार आदमियों को जीत ले तो उसे आप क्या कहेंगे ? - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान १
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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