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'भगवान्' शब्द की व्याख्या
'भगवान' शब्द 'भग' धातु से बना है। भग' का अर्थ है-ऐश्वर्य । अर्थात् जो समग्र ऐश्वर्य से युक्त है वह भगवान् कहलाता है। कहा भी है
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य रूपस्य यशसः श्रियः ।
धर्मस्याथ प्रयत्नस्य षणां भग इतीरना ।। अर्थात्-सम्पूर्ण ऐश्वर्य, रूप, यश, श्री, धर्म और प्रयत्न, यह छ: 'भग' शब्द के वाच्य हैं।
कहा जा सकता है कि त्यागी-तपस्वी वीतराग पुरुष में ऐश्वर्य क्या हो सकता है ? और उस ऐश्वर्य को हम कैसे देख सकते हैं? इसका उत्तर यह है कि जड़ एवं स्थूल ऐश्वर्य स्थूल नेत्रों से देखा जा सकता है और सूक्ष्म ऐश्वर्य को देखने के लिए सूक्ष्म नेत्रों की आवश्यकता होती है। आन्तरिक दृष्टि जिन्हें प्राप्त है वे भगवान् का ऐश्वर्य देख सकते हैं। भगवान् की अनन्त आत्मिक विभूतिही उनका ऐश्वर्य है।
कल्पना कीजिए एक स्वामी और उसका सेवक समान वस्त्र पहन कर खड़े हैं। फिर भी भलीभांति देखने वाले को यह बात मालूम हो जाती है कि यह स्वामी और यह सेवक है। जब साधारण मनुष्य के शरीर पर भी ऐश्वर्य के चिह्न दिखाई दे जाते हैं तो त्रिलोक पूज्य भगवान् के ऐश्वर्य को देख लेना कोई कठिन बात नहीं है।
आज भी कई चित्रों में, जिसका वह चित्र होता है उसके आसपास अगर वह विभूषितमान् हो तो एक प्रभावमण्डल बना रहता है, पर प्रभातमण्डल उसके विभूतिमान् होने का द्योतक है। आधुनिक विज्ञान भी इस बात को पुष्ट करता है।
सारांश यह है कि भगवान् का अर्थ है-ऐश्वर्य सम्पन्न और पूज्य । जो ऐश्वर्य से सम्पन्न और पूज्य होता है, वह भगवान् कहलाता है। चाहे कोई
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ७६