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________________ अनेक अनगिनती मनुष्य हैं जो असक्त होने पर भी परिश्रम करते हैं और फिर भी भरपेट भोजन नहीं पाते। ऐसे लोगों पर आपको कितनी दया आती है ? उन गरीबों पर आपका ही बोझ है। आपके बोझ से वे दबे जा रहे हैं । यह बहुमूल्य मिलों के वस्त्र उन्हें मार रहे हैं। अगर आपने इन वस्त्रों का त्याग कर दिया होता तो वह भूखों क्यों मरते? मगर आपके अन्तःकरण में भी अभी तक समभाव जागृत नहीं हुआ है। दूसरों के दुःख को आप अपना दुःख नहीं मानते। यही नहीं, दूसरों के दुःख को आप अपने सुख का साधन बना रहे हैं। जैन धर्म की बुनियाद समभाव हैं। जब तक आप में समभाव नहीं आता, आप के अन्तःकरण में करुणा का उदय नहीं होता, तब तक धर्म का प्रभाव नहीं फैल सकता । लोग अगर मौज-शोक त्याग दें, विलासमय जीवन का विसर्जन कर दें तो गरीबों को अपने बोझ से हलका कर सकेंगे, साथ ही, अपने जीवन को भी सुधार के पथ पर अग्रसर कर सकेगें। क्या विलासितावर्द्धक बारीक वस्त्र पहनने से ब्रह्मचर्य के पालन में सहायता मिलती है? अगर नहीं, तो अपने जीवन को बिगाड़ने वाले तथा दूसरों को भी दुःख में डालने वाले वस्त्रों के पहनने से क्या लाभ है? बहिनें चाहे उपवास कर लेंगी, तपस्या करने को तैयार हो जायेंगी, परन्तु मौज-शौक त्यागने को तैयार नहीं होतीं। ऐसा करने वाली बहिनों के दिल में दया है, यह कैसे कहा जा सकता है ? एक रुपये की खादी का रुपया गरीबों को मिलता है और मील के कपडे का रुपया महापाप में जाता है। मील के कपड़े के लिए दिया हुआ रुपया आप ही को परतन्त्र बनाता है । पर यह सीधा-सादा विचार लोगों को नहीं जंचता। इसका मुख्य कारण समभाव का अभाव है। रामचन्द्र ने कैकेयी के हृदय के साम्य का अभाव देखा। उसे सुधारने के विचार से रामचन्द्र ने सीता सहित छाल के वस्त्र पहिने और अन्त में कैकेयी के अन्तःकरण में समता भाव जागृत कर दिया। ऐसा रामचन्द्र का साम्यभाव था। वास्तव में सच्चा समताभावी व्यक्ति ही दूसरों को विषमभाव में रमते नहीं देख सकता । भगवान् महावीर में साम्यभाव पराकाष्ठा को पहुंच गया था। अतः वह 'समण' अर्थात् प्राणी मात्र के साथ समता से वर्त्तने वाले कहलाते हैं। ७८ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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