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________________ राम के हृदय में भी भगवान् महावीर के समभाव के प्रति सहानुभूति थी। इसी कारण उन्होंने माता के हृदय की विषमता को भंग करने के लिए अपने अधिकार को अयोध्या के राज्य को छोड़ दिया था। यहां यह कहा जा सकता है कि रामचन्द्र और भगवान् महावीर के समय में बहुत अन्तर है। फिर महावीर के समभाव के प्रति राम को सहानुभूति थी, यह कथन युक्ति-संगत कैसे हो सकता है? इसका उत्तर यह है कि जगत् अनादिकाल से है और जगत् की भांति ही सत्य-आदर्श भी अनादि है। व्यक्ति कभी होता है, कभी नहीं, मगर आदर्श स्थायी होता है। जो व्यक्ति जिस आदर्श को अपने जीवन में मूर्त रूप से प्रतिबिम्बित करता है, जिसका जीवन जिस आदर्श का प्रतीक बन जाता है, वह आदर्श उसी का कहलाता है। वस्तुतः आदर्श शाश्वत, स्थायी और अनादि अनन्त है। राम के स्थूल चरित्र को देखा जाये तो प्रतीत होगा कि समभाव का आदर्श राज्य-राम राज्य होता है और विषमभाव से वही हाल होता है जो दुर्योधन का हुआ था। जब हृदय में समभाव होता है तो प्रकृति भी कुछ अलौकिक सी हो जाती है। साधारणतया लोग चाहते हैं कि हम बड़े हो जावें तो दूसरों को दबा लें। लेकिन राम ने अपने अधिकार का राज्य त्याग कर अपने बड़प्पन का परिचय दिया। यह सब समभाव की महिमा है। अहंकार के द्वारा बड़े होने से कोई बड़ा नहीं होता। सच्चा बड़प्पन, दूसरों को बड़ा बनाकर आप छोटे बनने से आता है। मगर संसार इस सच्चाई को नहीं समझता। छोटों पर अत्याचार करना ही आज बड़प्पन का चिह माना जाता है। आज विश्व में इतनी विषमता व्याप रही है कि सन्तान अपने माता-पिता की अवहेलना करने में भी संकोच नहीं करती। कल मैंने एक वृद्ध पुरुष को देखा था। वृद्धावस्था के कारण उसका शरीर जीर्ण हो गया था। हाथ-पैर शक्तिहीन हो गये थे। फिर भी वह सिर पर बोझ लादे घाटी चढ़ रहा था। उसे बहुत ही कष्ट अनुभव हो रहा था। उसे देख कर एक मुस्लिम भाई ने, जो शायद बूढ़े से परिचित थे-कहा-'इस बुड्ढे की जैसी औलाद है, वैसी होकर मर जाये तो अच्छा है' अर्थात् उसने बुड्ढे की सन्तान को कृतघ्न बतलाया और ऐसी सन्तान के होने की अपेक्षा न होना अधिक अच्छा समझा। ऐसे दुर्बल वृद्ध पर किसे दया न आयेगी? जिसके हृदय में समभाव का थोड़ा सा भी अंश है, वह द्रवित हुए बिना नहीं रह सकता। पर आज ऐसे श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ७७ 333333388888888888
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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