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________________ पद्मावती रानी ने अपने पति कोणिक को भड़काया। उसने कहा-'सम्पूर्ण राजकीय वैभव का सार हार हाथी ही है। बहिलकुमार ने वह ले लिया वह तो मक्खन था। छाछ के समान इस राज्य में क्या रक्खा है? तुम निस्सार राज्य में क्यों भरमा गये? अगर हार-हाथी न मिला तो हम तुम राजा-रानी ही क्या रहे? राजा कोणिक ने पहले तो कह दिया कि स्त्रियों की बातों में लग कर मैं अपने भाई से विरोध नहीं कर सकता। लेकिन पद्मा ने कोणिक को फिर उकेरा। उसने कहा-'हार हाथी नहीं चाहते तो न सही, पर एक बार मांगकर तो देखो। मांगने से मालूम हो जायेगा कि जिसे आप अपना भाई समझते हैं, उसके हृदय में आपके लिए कितना स्थान है? __ कहते हैं काली नागिन से जितनी हानि नहीं होती, उतनी दुर्बुद्धि वाले मनुष्य के संसर्ग से होती है। इसी के अनुसार कोणिक के अन्तःकरण से पद्मा का परामर्श जम गया। उसने कहा-क्या मेरा भाई, मेरी इतनी-सी आज्ञा नहीं मानेगा?' यह कह कर कोणिक ने एक दूत बहिलकुमार के पास भेजा। दूत के साथ कहलाया-भैया हार-हाथी भेज दो। इतने दिन तुमने रक्खा है, अब कुछ दिन तक हम रक्खेंगे। दूत गया। उसने बहिलकुमार से कोणिक का संदेश कहा। संदेश सुनकर बहिलकुमार का संतोष क्रोध के रूप में परिणत हो गया। उसने कहा -'राज्य के हिस्से के समय तो मैं याद न आया और हार-हाथी हथियाने के लिए भैया हो गया? इस प्रकार दोनों भाइयों का मन बिगड़ गया। इस बिगाड़ का परिणाम यह आया कि एक करोड़ अस्सी लाख मनुष्यों का क्रूरतापूर्वक संहार हुआ। और दूसरे प्राणी कितने मरे, यह कौन जाने? इस भीषण नरसंहार से भी हाथ कुछ न आया। हार देवता ले गये। हाथी मर गया। कोणिक विशाला नगरी को ध्वंस करके, अपने दस सहोदर भाइयों को मरवाकर वापस लौट आया। यह सब समभाव के अभाव का और विषम भाव की प्रबलता का परिणाम है। इसके विरुद्ध समभावसे कितनी शान्ति और कितना आनंद होता है, यह जानने के लिए रामचन्द्र का उदाहरण मौजूद है। जिसके हृदय में समभाव विद्यमान है वह एकान्त में बैठा हुआ भी संसार की भलाई कर रहा है। जिसका हृदय बुरी भावनाओं का केन्द्र बना हुआ है वह एकान्त में बैठा हुआ भी संसार में आग फैला रहा है। ७६ श्री जवाहर किरणावली .
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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