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________________ डाक्टर कहता है कि शुद्ध हवा चलने से हमारा काम नहीं चलता, क्योंकि इससे रोग नहीं होते। तो डाक्टर के इस कथन को आप कैसे समझेंगे? 'बुरा'। धनिको ने बहुत-सा अनाज खरीद कर भर लिया। लेकिन वर्षा ठीक होने लगी इसलिए वे रोने लगे कि अनाज सस्ता होने से हमारा दीवाला निकल जायेगा। वे चाहते हैं कि या तो अतिवृष्टि हो जाये या अनावृष्टि हो जाये, जिससे फसल गिबड़ जावे। क्या धनिकों की इस इच्छा को सब लोग ठीक कहेंगे? 'नहीं। इसी प्रकार स्वार्थ-लोलुप, लोभी, लालची लोग यह कहते हैं कि समभाव से काम नहीं चल सकता। मगर जो लोग अपना स्वार्थ छोड़ कर अथवा अपने स्वार्थ के समान ही दूसरों के स्वार्थ को महत्त्व देकर विचार करते हैं, वे जानते हैं कि समभाव से ही संसार का काम चल सकता है। समभाव से ही संसार स्थिर रह सकता है। समभाव से ही स्वर्ग के समान सुखमय बन सकता है। समभाव से ही शान्ति और सन्तोष से परिपूर्ण जीवन बन सकता है। समभाव के बिना संसार नरक के तुल्य बनता है। समभाव के अभाव में जीवन अस्थिर, अशान्त, क्लेशमय और सन्तापयुक्त बनता है। संसार में जितनी मात्रा में समभाव की वृद्धि होगी, उतनी ही मात्रा में सुख की वृद्धि होगी। डाक्टर अपने जघन्य स्वार्थ की साधना के लिए वायु को विकृत करने की इच्छा करता है। उसकी इच्छा पूरी होने से संसार में खराबी पैदा होती है। इसका अर्थ यह है कि समभाव न रहने से संसार की खराबी होगी। समभाव अमृत है और विषमभाव विष है। अमृत से काम न चल कर विष से काम चलेगा, यह कथन जैसे मूखों का ही हो सकता है, इसी प्रकार समभाव से नहीं वरन् विषम भाव से संसार चलता है यह कहना भी मूों का ही है। भाई-भाई में जब खींचतान आरम्भ होती है, एक भाई अपने स्वार्थ की तरफ फूटी आंख से भी नहीं देखता तब विषमता उत्पन्न होती है। विषमता का विष किस प्रकार फैलता है और उस से कितना विनाश एवं विध्वंस होता है, यह जानने के लिए राजा कोणिक और बहिलकुमार का दृष्टांत पर्याप्त है। कोणिक और बहिल कुमार भाई-भाई थे। बहिल कुमार ने सन्तोष किया कि राज्य में हिस्सा न मिला, न सही, हार और हाथी ही बहुत हैं। लेकिन - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ७५
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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