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टीकाकार कहते हैं प्रस्तावना के इस सूत्र को मूल टीकाकार ने सम्पूर्ण शास्त्र को लक्ष्य करके व्याख्यान किया है, परन्तु मैंने प्रथम शतक के प्रथम उद्देशक को लक्ष्य करके ही व्याख्या की है। इसका कारण यह है कि शास्त्रकार ने प्रत्येक शतक और प्रत्येक उद्देशक के आरम्भ में अनेक से उपोद्घात किया है। जब अलग-अलग उपोद्घात पाया जाता है तो फिर यह उपोद्घात वाक्य सम्पूर्ण सूत्र को लक्ष्य करके क्यों समझना चाहिए?
यहां टीकाकार ने एक बात और स्पष्ट की है। वह लिखते हैं कि यद्यपि मूल टीकाकार ने मंगलाचरण संबंधी पदों की टीका नहीं की है, फिर भी हमने उनकी टीका कर दी है। प्राचीन टीकाकार द्वारा इन पदों की टीका न करने का कोई खास कारण अवश्य रहा होगा। संभवतः उनके समय में यह पाठ ही न रहा हो।
पहले प्रस्तावना संबंधी जो मूल पाठ दिया गया है, उसके संबंध में शंका उठाई जा सकती है। वह यह कि पहले यह कहा जा चुका है कि प्रस्तुत सूत्र सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी को सुनाया था। साथ ही यह भी कहा गया है कि राजगृह नगर में यह सूत्र सुधर्मा स्वामी ने सुनाया था। जब राजगृह नगर में ही यह सुत्र सुनाया गया तो स्पष्ट है कि सूत्र सुनाने के समय राजगृह नगर विद्यमान था। मगर 'रायगिहे णानं णयरे होत्था' अर्थात् राजगृह नामक नगर था, इस भूत कालीन क्रिया से प्रतीत होता है कि सूत्र सुनाते समय राजगृह नगर विद्यमान नहीं था। अगर उस समय विद्यमान होता तो सुधर्मा स्वामी 'रायगिहे णामं णयरे होत्था' के स्थान पर 'रायगिहे णामं णयरे अत्थि-राजगृह नामक नगर है ऐसा कहते। 'राजगृह नामक नगर था' ऐसा कहने से यह प्रतीत होता है कि राजगृह नगर पहले था-सूत्र सुनाते समय नहीं था। अगर सूत्र सुनाते समय राजगृह नगर नहीं था तो फिर राजगृह में यह शास्त्र कैसे सुनाया गया? अगर था तो उसके लिए होत्था' इस भूत कालीन क्रिया का प्रयोग किस अभिप्राय से किया गया है? 'अत्थि' (है) ऐसा वर्तमान काल संबंधी प्रयोग क्यों नहीं किया गया?
_इस प्रश्न का उत्तर आचार्य देते हैं कि सूत्र सुनाते समय भी राजगृह नगर विद्यमान था। फिर भी उसके लिए 'नगर था' इस प्रकार की भूतकालीन क्रिया का प्रयोग किया गया है। इस प्रयोग का कारण यह है कि यह अवसर्पिणी काल है। इस काल में क्रमशः हीनता होती जाती है। हीनता का बाह्य रूप किसी समय में दृष्टिगोचर होता है। किन्तु सूक्ष्म रूप में प्रतिक्षण किंचित हीनता हो रही है। अतएव भगवान् महावीर के समय में राजगृह नगर ६६ श्री जवाहर किरणावली -