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________________ राजगृह नगर से बाहर, ईशान कोण में, गुणशीलक या गुणशील नाम चैत्यालय था। राजगृह में श्रेणिक राजा राज्य करता था और चेलना नामक उसकी रानी थी। पहले कहा जा चुका है कि यह सूत्र सूधर्मास्वामी ने, जम्बूस्वामी के लिए कहा था। इस संबंध में टीकाकार ने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि सुधर्मास्वामी के अक्षर तो सूत्र में देखे नहीं जाते, फिर कैसे प्रतीत हो कि यह शास्त्र सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी के प्रति कहा है? अथवा वही सूत्र है जो सुधर्मास्वामी ने कहा था। इस तर्क का स्वयं ही समाधान करते हुए टीकाकार कहते हैं-सब सूत्रों की वाचना सुधर्मास्वामी द्वारा ही की गई है। इसका प्रमाण यह है 'तित्थं च सुहम्माओ, निरवच्चा गणहरा सेसा।' अर्थात्-सुधर्मास्वामी का ही तीर्थ चला है। अन्य गणधरों के शिष्य परम्परा नहीं हुई है। सिर्फ सुधर्मास्वामी के ही शिष्य प्रशिष्य हुए हैं। अब यह प्रश्न किया जा सकता है कि सुधर्मास्वामी ने जम्बू स्वामी को ही यह सूत्र सुनाया, यह कैसे मान लिया जाये? इसका उत्तर यह है कि जम्बू स्वामी ही सुधर्मास्वामी के पट्ट शिष्य को संबोधन करके ही सूत्र कहा जाता प्रश्न हो सकता है कि सुधर्मा स्वामी से ही तीर्थ चला यह तो ज्ञान हो गया, मगर सुधर्मा स्वामी ने ही यह सूत्र जम्बू स्वामी को सुनाया है, इसके विषय में क्या प्रमाण है ? टीकाकार कहते हैं-इस विषय में यह प्रमाण है 'जइ णं भंते !पंचमस्स अंगस्स विआह पण्णत्तीए समणेणं भगवया महावीरेणं अयमढे पण्णत्ते; छट्ठस्स णं भंते! के अढे पण्णत्ते?' -नायाधम्मकहा । यह ज्ञाता सूत्र की पीठिका का सूत्र है। इस में जम्बू स्वामी, सुधर्मा स्वामी से कहते हैं -(निर्वाण को प्राप्त) श्रमण भगवान् महावीर द्वारा प्ररूपित पांचवां अंग भगवती सूत्र तो सुनाया, लेकिन छठे अंग- ज्ञाताधर्म कथा का भगवान् ने क्या अर्थ बतलाया है ? (कृपा करके समझाइए)। जम्बू स्वामी के इस कथन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सुधर्मा स्वामी ने ही भगवती सूत्र जम्बू स्वामी को सुनाया था। इस कथन के प्रमाण से हम इस निर्णय पर पहुंचते हैं कि भगवती सूत्र का उपदेश सुधर्मा स्वामी ने ही जम्बू स्वामी को सम्बोधन करके किया था। or श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ६५ 88888888 88888888884
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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