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बतलाया गया है। वहां पांच पहाड़ों का उल्लेख भी पाया जाता है। जैन शास्त्रों में पांच पहाड़ों के नाम इस प्रकार मिलते हैं- वैभार, विपुल, उदय, सुवर्ण और रत्नागिरी । इन्हीं से मिलते-जुलते, कुछ-कुछ भिन्न नाम वैदिक पुराणों में भी पाये जाते है ।
राजगृह का वर्तमान नाम 'राजगिर' है। वह बिहार से लगभग तेरह मील दूर, दक्षिण दिशा में मौजूद है। जैन सूत्रों में राजगृह से बाहर, उत्तर पूर्व में नालंदा नामक स्थान का उल्लेख आता है। प्रसिद्ध नालंदा विद्यालय पीठ उसी जगह था ।
इसी सूत्र में (भगवती में) दूसरे शतक के पांचवें उद्देशक में राजगृह के गर्म पानी के झरने का उल्लेख है । उसका नाम 'महा पोषतीरप्रभ' बतलाया गया है। चीनी यात्री फाहियान ने और ह्युएत्सिंग ने गर्म पानी के झरने को देखा था, ऐसा उल्लेख मिलता है । बौद्ध ग्रन्थों में इस झरने का नाम 'तपोद' बतलाया गया है।
भगवती सूत्र में राजगृह नगर का वर्णन चम्पा नगरी के समान बतलाया गया है। चम्पा नगरी का वर्णन उववसई सूत्र में किया गया है। उस वर्णन से तत्कालीन नागरिक जीवन पर अच्छा प्रकाश पड़ता है, अतएव उसका सार यहां उद्धृत किया जाता है :
राजगृह नगर मनुष्यों से व्याप्त था । राजगृह के मार्ग की सीमा सैकड़ों और हजारों हलों द्वारा दूर-दूर तक जोती जाती थी। वहां की भूमि बढ़िया और उपजाऊ थी। वहां बहुसंख्यक मुर्गे और सांड थे । वह गन्ना, यव और शालि से भरपूर था। नगर में बैलों, भैंसों और मेढ़ा की बहुतायत थी। वहां सुन्दर आकार वाले चैत्यों और सुन्दर युवतियों के सनिवेशों की बहुलता थी । वहां घूसखोरों का, गंठकटो का बलात्कार प्रवृत्ति करने वाले भटों का (गुण्डों का), चोरों का और फंसाने वालों का नाम - निशान तक न था । नगर क्षेम, निरुपद्रव रूप था। वहां भिक्षुओं को अच्छी भिक्षा मिलती थी । विश्वासीजनों के लिए शुभ आवास वाला, अनेक कुटुम्बपालकों से भरपूर संतुष्ट और शुभ था । नट, नाचने वाले, रस्सी पर चलने वाले, मल्ल, मुष्टि युद्ध करने वाले, विदूषक (हंसोड़े) पुराणीओं, कूदने वाले, रास गान गाने वाले, शुभ -अशुभ बताने वाले, बड़े बांस पर खेल करने वाले, चित्र दिखाकर भीख मांगने वाले, तू नामक बाजा बजाने वाले, तंबू की बीणा बजाने वाले, और अनेक ताल देने वाले राजगृह नगर में निवास करते थे।
श्री भगवती सूत्र व्याख्यान
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