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________________ सागरोपम का होता है। इस समय अवसर्पिणी काल का पांचवा आरा है। यह आरा इक्कीस हजार वर्ष का है। भगवान् महावीर स्वामी इस आरे के आरम्भ होने से पहले ही अर्थात् चौथे आरे में विचरते थे। उसी समय का यहां वर्णन है। अतएव 'उस काल' का अर्थ है वर्तमान अवसर्पिणी काल का चौथा आरा। __ अवसर्पिणी काल का चौथा आरा बयालीस हजार वर्ष कम एक क्रोड़ा क्रोड़ी सागरोपम का होता है। इतने लम्बे काल में से कब का यह वर्णन समझा जाये? अतएव उस काल में विशेषता बतलाने के लिए यहां दो बातों का उल्लेख कर दिया है-भगवान् महावीर का और राजा श्रेणिक का। इसका तात्पर्य यह हुआ कि वर्तमान अवसर्पिणी काल में और उसके चौथे आरे में भी, जब भगवान् महावीर विचरते थे और श्रेणिक नामक राजा था, उस समय में यह सूत्र बना है। अतएव समय का अर्थ हुआ-भगवान् महावीर और श्रेणिक राजा का विद्यमानता का समय। समय बतलाने के पश्चात् क्षेत्र बतलाना चाहिये। अतएव यहां कहा गया है कि मगध देश में, राजगृह नामक विशाल नगर था। उस नगर में प्रस्तुत प्रश्नोत्तर हुए जिससे शास्त्र की रचना हुई। राजगृह नगर किस प्रकार का था? इस संबंध में सुधर्मास्वामी ने कहा है कि उववाई सूत्र में, चम्पा नगरी का जो वर्णन किया गया है, वही वर्णन यहां भी समझ लेना चाहिये। अर्थात् चम्पा नगरी के समान ही राजगृह नगर था। पहले क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर था। राजा जितशत्रु ने उसे क्षीणवास्तुक समझकर दूसरी जगह नगर बसाने का इरादा किया। उसने फल-फूल से समृद्ध एक चनक क्षेत्र देखकर उस स्थान पर 'चनकपुर' नगर बसाया। कालक्रम से उसे भी क्षीण मानकर, वन में एक अजेय वृषभ (बैल) देखकर उस स्थान पर 'ऋषभपुर' की स्थापना की। समय पाकर वह भी क्षीण हो गया। तब कुश (दूब) का गुल्म देखकर 'कुशाग्रपुर' नामक नगर बसाया। जब कुशाग्रपुर कई बार आग से जल गया, तब प्रसेनजित राजा ने राजगृह नामक नगर बसाया। राजगृह नगर को जैन साहित्य एवं बौद्ध साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भगवान् महावीर और बुद्ध ने राजगृह में अनेक चातुर्मास व्यतीत किये थे। ‘पन्नवणा' सूत्र के अनुसार राजगृह नगर मगध देश की राजधानी था। महाभारत के सभा पर्व में भी, राजगृह को जरासंध के समय में मगध की राजधानी प्रकट किया गया है। राजगृह का दूसरा नाम 'गिरिब्रज' भी ६२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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