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________________ तात्पर्य यह है कि प्रवचन को ही वास्तव में तीर्थकर नमस्कार करते हैं और प्रवचन ही असली तीर्थ है। मगर संघ को लक्ष्य करके ही प्रवचन की प्रवृत्ति होती है, किसी वृक्ष आदि को लक्ष्य करके नहीं। इस कारण संघ भी तीर्थ कहलाता है। प्रश्न-क्या चतुर्विध तीर्थ को भगवान् नमस्कार नहीं करते? उत्तर-गुण और गुणी में भिन्नता है। दोनों सर्वथा एक नहीं है। गुणी को कल्प के अनुसार ही नमस्कार किया जाता है, पर गुण के सम्बन्ध में यह मर्यादा नहीं है। गुण को सर्वत्र नमस्कार किया जा सकता है। सम्यग्ज्ञान, सम्यक्-दर्शन और सम्यक्-चरित्र गुण हैं। ज्ञान को धारण करने वाला ज्ञानी, दर्शन को धारण करने वाला दर्शनी और चरित्र को धारण करने वाला चारित्री कहलाता है। चरित्र आदि गुण हैं और चारित्र आदि धारण करने वाला गुणी है। चरित्र धारण करने वाला चारित्री अपने कल्प का विचार करके किसी को नमस्कार करेगा, परन्तु गुण के सम्बन्ध में यह बात नहीं है। गुणी को नमस्कार करने में कल्प नहीं देखा जाता। इस प्रकार अर्हन्त भगवान् गुण को ही नमस्कार करते हैं, न कि गुणी को अर्थात् साधु, साध्वी आदि को। गुण को नमस्कार करना भाव तीर्थ को नमस्कार करना ही कहलाता है। प्रश्न-अर्हन्त अपने बनाये हुए श्रुत को नमस्कार क्यों नहीं करते हैं। उत्तर- श्रुत, अर्हन्त भगवान् के परम केवल ज्ञान से उत्पन्न हुआ है, तथापि संसार में स्थिर भव्य जीवन इसी के सहारे तिरते हैं। अतएव श्रुत को भी इष्ट देव रूप ही समझना चाहिए। क्षत्रिय अपनी तलवार और वैश्य अपनी दुकान एवं बही को क्यों नमस्कार करते हैं? इसीलिए कि उनकी दृष्टि में वह मांगलिक है। यद्यपि तलवार और दुकान-बही आदि क्षत्रिय एवं वैश्य की ही बनाई या बनवाई हुई हैं, तथापि वह उनका सम्मान बढ़ाने वाली हैं। अपनी वस्तु का स्वयं आदर किया जायेगा तो दूसरे भी उसका आदर करेंगे। तभी वह वस्तु आदरणीय समझी जायेगी। ___ अर्हन्त भगवान् ने जो वचन कहे हैं, परम आदरणीय हैं। इसका प्रमाण यह है कि उन वचनों को स्वयं अर्हन्त भगवान् ने भी नमस्कार किया है। वीतराग होने के कारण अर्हन्त भगवान् अपना निज का उपकार तो कर ही चुके थे। उन्होंने जो उपदेश दिया वह दूसरों के उपकार के ही लिए दिया। मगर उपदेश दूसरों के लिए तभी उपकारक हो सकता है, जब उपदेष्टा स्वयं उसका पालन करें। इस लोक-मानस को दृष्टि के समक्ष रखकर ही अर्हन्तों - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ५६
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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