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________________ इस शास्त्र का फल क्या है। इसके अध्ययन अध्यापन से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है? इस प्रश्न का समाधान शास्त्र के नाम से ही हो जाता है। जिसका नाम 'अमृत' है, उसका फल मृत्यु तो हो नहीं सकता। इसी प्रकार प्रस्तुत शास्त्र के नाम से ही फल का ज्ञान हो जाता है। नाम से फल का ज्ञान किस प्रकार होता है, यह आगे बतलाया जाता है। फल दो प्रकार का होता है (1) अनन्तर (साक्षात्) फल और (2) परम्परा फल । इस शास्त्र में श्री गोतम स्वामी आदि के द्वारा पूछे हुए विविध अर्थों की व्याख्या की गई है। यह व्याख्या ही इस शास्त्र का अभिधेय है। अभिधेय संबंधी अज्ञान दूर होकर उसका ज्ञान हो जाना ही इस शास्त्र का साक्षात्-फल है। अर्थात् शास्त्र में जिन-जिन बातों का वर्णन किया गया है, उन बातों का ज्ञान हो जाना इस शास्त्र के अध्ययन का साक्षात् फल है। शास्त्र के अध्ययन से जो साक्षात् फल अर्थात् ज्ञान प्राप्त होता है उस ज्ञान का फल परम्परा में मोक्ष है। अतएव इस शास्त्र का परम्परा फल मोक्ष है। जिस बीज का अंकुर भी प्यारा लगता है, वह बीज यदि अच्छी भूमि में बोया जायेगा तो परम्परा से वह मधुर फल देगा। इसी प्रकार इस ज्ञान को निर्मल अन्तःकरण में बोने से, परम्परा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस शास्त्र का परम्परा फल मोक्ष ही क्यों बतलाया गया है? धन आदि सांसारिक वैभव परम्परा फल क्यों नहीं हैं? इसका उत्तर यह है कि सूत्र आप्त के वचन हैं। जो सर्वज्ञ और यथार्थ वक्ता होता है वही आप्त कहलाता है। आप्त उसी समय होता है जब मोक्ष के विषय में मोक्ष को लक्ष्य करके ही उपदेश होता है। क्योंकि मोक्ष ही सच्चा सुख है, मोक्ष ही आत्मा का असली वैभव है। धन आदि अज्ञान के कारण सुख रूप प्रतीत होते हैं, वस्तुतः वे दुःख के कारण हैं। जो सुख पर द्रव्याश्रित होता है वह सुख नहीं, सुखाभास है; क्योंकि पर द्रव्य का संयोग अनित्य है। सच्चे आप्त जगत् के जन्म, जरा, मरण से आर्त प्राणियों को सच्चे सुख का मार्ग प्रदर्शित करते हैं। अतः उनके द्वारा प्ररूपित आगम का परम्परा फल सांसारिक वैभव नहीं वरन् मोक्ष ही होता है। सांसारिक वैभव मोक्ष की तुलना में इतना तुच्छ है कि अगर उसकी प्राप्ति हो भी, तब भी वह किसी गिनती में नहीं है। प्रश्न हो सकता है कि शास्त्र में स्वर्ग-नरक का भी वर्णन है। स्वर्ग-नरक के भेद आदि का भी वर्णन है। अगर आप मोक्ष के अतिरिक्त स्वर्ग आदि का भी उपदेश नहीं देते तो स्वर्ग आदि के वर्णन की क्या आवश्यकता थी? ५२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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