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करने के फल के बराबर साधु को नमस्कार करने का फल नहीं होता है। अरिहंत को नमस्कार करने का उत्कृष्ट फल होता है। जैसे मनुष्य मात्र में राजा भी सम्मिलित है, परन्तु सामान्य मनुष्य को नमस्कार करने से, राजा को नमस्कार करने का फल नहीं मिलता। अरिहंत भगवान् राजा के समान हैं और साधु उनकी परिषद् के सदस्य हैं। इस कारण 'नमो अरिहंताणं' पद न रख कर यदि 'नमो सव्वसाहूणं' पद ही रक्खा जाता तो अरिहंत भगवान् को नमस्कार करने के उत्कृष्ट फल की प्राप्ति न होती। अतएव अरिहंतों को और साधुओं को अलग-अलग नमस्कार किया गया है।
शंका-अरिहंतों की अपेक्षा सिद्धों की आत्मविशुद्धि अधिक है। अरिहंत सिर्फ चार धाति-कर्मों का क्षय करते हैं और सिद्ध आठ ही कर्मों का। अरिहंत सशरीर होते हैं सिद्ध अशरीर। इस प्रकार अरिहंत की अपेक्षा सिद्ध का पद उच्चतर है। फिर यहां नमस्कार मंत्र में प्रथम अरिहंतों को और उसके पश्चात् सिद्धों को नमस्कार क्यों किया गया है?
समाधान-यह सत्य है कि अरिहंतों की अपेक्षा सिद्धों की आत्मिक विशुद्धता उच्च श्रेणी की होती है, अगर सिद्ध संसार से अतीत, अशरीर, इन्द्रिय-अगोचर हैं। उनके स्वरूप का ज्ञान हमें कैसे हआ? हमें सिद्धों का अस्तित्व किसने बताया है? अरिहंतों को पहचानने से ही हम सिद्धों को पहचान सकते हैं; तथा अरिहंत भगवान् ही सिद्धों की सत्ता प्रकट करते हैं। अतएव सिद्धों के स्वरूप का ज्ञान अरिहंतों के अधीन होने से अरिहंत भगवान् प्रधान कहलाते हैं। वे आसन्न उपकारक होने के कारण भी प्रधान हैं।
इसके अतिरिक्त जब धर्म-तीर्थ का विच्छेद हो जाता है तब अरिहंत तीर्थंकर ही तीर्थ की स्थापना करते हैं। वही महापुरुष हमें सिद्ध बनने का मार्ग बतलाते हैं। इस प्रकार हमारे ऊपर अरिहंतों का विशिष्ट उपकार होने के कारण पहले अरिहंतों को ही नमस्कार किया जाता है।
शंका-अगर उपकारी को प्रथम नमस्कार करना उचित है तो सबसे पहले आचार्य को नमस्कार करना चाहिए, फिर अरिहंत को। क्योंकि अरिहंत भगवान् की पहचान आचार्यों ने ही हमें कराई है। यहां ऐसा क्यों नहीं किया गया?
समाधान-इस शंका का समाधान यह है कि आचार्य स्वतंत्रभाव से अर्थ का निरूपण नहीं कर सकते। अरिहंत भगवान् द्वारा उपदिष्ट अर्थ का निरूपण करना ही आचार्य का कर्तव्य है। अपनी कल्पना से ही वस्तु का विवेचन करने वाला आचार्य नहीं कहला सकता। आचार्य अरिहंतों के कथन का शिष्यों की योग्यता के अनुसार संक्षेप या विस्तार करके प्ररूपणा करते हैं। ४६ श्री जवाहर किरणावली