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________________ साधुओं के साथ प्रयुक्त किया गया 'सर्व' विशेषण अत्यन्त गंभीर विचार का परिणाम है। गुणवान् मुनियों में से कोई भी शेष न रह जाये, यह सूचित करने के उद्देश्य से सव्व (सर्व) विशेषण लगाया गया है। कोई उत्तम रीति से ही साधुता पालन करता है, कोई मध्यम रूप से। परन्तु जो साधु धर्म की आराधना में तत्पर हैं वे सब साधु हैं। उन सब को यहां नमस्कार किया गया है। शंका-अगर समस्त साधुओं का ग्रहण करने के लिए 'सव्व' विशेषण लगाया गया है तो समस्त अरिहन्तों का ग्रहण करने के लिए, सब सिद्धों का समावेश करने के लिए तथा समस्त आचार्यों और उपाध्यायों का ग्रहण करने के लिए पहले के चार पदों में 'सव्व' शब्द का प्रयोग क्यों नहीं किया गया है? सब अर्हन्त न एक ही देश में होते हैं, न एक ही काल में होते हैं। उनमें भी अनेक भेद हो सकते हैं। इसी प्रकार सिद्ध आदि में भी भेद हो सकते हैं। फिर एक पद के साथ ही 'सव्व' विशेषण क्यों प्रयोग किया गया है? समाधान-अन्त के पद में जो विशेषण लगाया गया है उसका संबंध सभी पदों के साथ किया जा सकता है। अतएव 'सर्व' विशेषण की अर्हन्त आदि पदों के साथ योजना कर लेना अनुचित नहीं है। क्योंकि न्याय सब के लिए समान है। ऐसी स्थिति में सब अर्हन्तों को, सब सिद्धों को, इस प्रकार प्रत्येक पद के साथ 'सर्व' का समन्वय किया जा सकता है। अरिहंत चाहे तीसरे आरे के हों, चाहे चौथे आरे के, चाहे भरत क्षेत्र वर्ती हों, चाहे विदेह क्षेत्र वर्ती हों, किसी भी काल के और किसी भी देश के क्यों न हों, बिना भेदभाव के सब नमस्कार करने योग्य हैं। इसी प्रकार सिद्ध चाहे स्वलिंग से हुए हों, चाहे अन्य लिंग से, चाहे तीर्थंकर होकर सिद्ध हुआ हो, चाहे तीर्थकर हुए बिना सिद्ध हुए हों, सभी समान भाव से नमस्करणीय हैं। अरिहन्त और सिद्ध की तरह आचार्य भी अनेक प्रकार के हो सकते हैं। अतः जिस पद में आचार्य को नमस्कार किया गया है, उस पद में भी 'सव्व विशेषण लगा लेना चाहिए। इसी प्रकार देश काल के भेद से तथा श्रुत सम्बन्धी योग्यता एवं क्षयोपशम के भेद से उपाध्यायों में भी अनेक विकल्प किये जा सकते हैं। उन सब उपाध्यायों का संग्रह करने के लिए उपाध्याय के चौथे पद में भी 'सव्व विशेषण की योजना कर लेना असंगत नहीं है। यहां तक 'सव्व' का अर्थ सर्व-सब मानकर संगति बिठलाई गई है। मगर 'सव्व' शब्द के और भी अनेक रूपान्तर होते हैं और उन रूपान्तरों का अर्थ भी पृथक-पृथक होता है। श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ४१ 88888888888888888888
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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