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कल्पी होते हैं यह स्थविरकल्पी दस प्रकार के कल्प में स्थिर रहते हैं । कोई मुनि कल्पानीत होते हैं, जैसे तीर्थंकर और स्नातक नियंठा वाले मुनि । इनके लिए कोई कल्प नहीं है । यह अपने ज्ञान में देखकर जो उचित होता है, वही करते हैं। इन सब प्रकार के मुनियों को नमस्कार करने के लिए 'सव्व' विशेषण का प्रयोग किया जाता है ।
अथवा कोई साधु प्रत्यक्ष बुद्ध होते हैं, जिन्होंने किसी वस्तु को देखकर बोध प्राप्त किया हो। कोई स्वयंबुद्ध होते हैं जो परोपदेश आदि के बिना स्वयं ही बोध प्राप्त करते हैं। कोई मुनि बुद्धबोधित होते हैं, जो किसी ज्ञानी के उपदेश से बोध प्राप्त करते हैं । इन सब को नमस्कार करने के लिए 'सव्व' विशेषण लगाया गया है।
अथवा - केवल भरत क्षेत्र में स्थित साधु ही वन्दनीय नहीं है, किन्तु महाविदेह क्षेत्र, जम्बूद्वीप, घातकीखंड द्वीप आदि जिस किसी भी क्षेत्र में साधु विद्यमान हों, उन सब साधुमार्गी की साधना करने वालों को नमस्कार करने के उद्देश्य से 'सव्व' विशेषण प्रयोग किया गया है।
यह कहा जा सकता है कि चौथे आरे में जैसे साधु होते थे, वैसे आज-कल नहीं होते। फिर सब को अभिन्न भाव से नमस्कार करना कहां तक उचित कहा जा सकता है ? इसका समाधान यह है कि चौथे आरे में संहनन आदि की विशिष्टता से उग्र संयम के पालक जैसे साधु होते थे, वैसे कालदोष से विशिष्ट संहनन आदि की शिथिलता के कारण आज भले ही न हो, तथापि आज-कल के साधु भी, जो साधु पद की मर्यादा के अन्तर्गत हैं, उनमें भी साधुत्व का लक्षण पाया जाता है। अतः साधुत्व की दृष्टि से सब समान हैं। इसके अतिरिक्त अगर चौथे आरे के समान साधु आज कल नहीं है तो चौथे आरे के समान वन्दना करने वाले श्रावक भी तो नहीं हैं।
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प्राचीन काल में जो कार्य जिस प्रकार से होता था, आज-कल वह उस प्रकार नहीं होता । केवल इसी कारण प्रत्येक कार्य को निन्दनीय नहीं ठहराया जा सकता। प्रत्येक कार्य पर समय का प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ गाय पहले जितना दूध देती थी, आज उतना दूध नहीं देती। फिर भी वह दूध तो देती ही है। उसका दूध उपयोग में आता ही है । गधी के दूध का तो उसके स्थान पर उपयोग नहीं किया जा सकता। इस प्रकार संसार के पदार्थ पहले वाले नहीं हैं, फिर भी हैं तो वैसे ही । प्रत्येक बात का विचार करते समय काल का भी विचार करना चाहिए । अतएव देश-काल के अनुसार जो उत्तम ज्ञान, दर्शन और चरित्र धारण करते हैं, उन सब को नमस्कार करने के लिए 'सव्व' शब्द का उपयोग किया गया है ।
श्री जवाहर किरणावली
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