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________________ निव्वाणसाहए जोए जम्हा साहेति साहुणो। समो य सव्वभूएसु, तम्हा ते भावसाहुणो।। अर्थात्-जो पुरुष निर्वाण के साधक ज्ञान, दर्शन आदि योगों को साधता है और सब प्राणियों पर समभाव रखता है वही भाव साधु कहलाता है। अथवा-'सहायकं वा संयम कारिणं धारयन्तीति साधवः ।' अर्थात् जो सयंम पालने वालों की सहायता करता है वह साधु कहलाता है। जो पुरुष जैसी सहायता कर सकता है वह वैसी ही सहायता करता है। साधु अपनी पद-मर्यादा के अनुकूल अन्य भव्य प्राणियों की मोक्ष साधना में सहायक बनते हैं इसलिए नियुक्ति के अनुसार उन्हें साधु कहते हैं। प्रश्न हो सकता है कि यहां 'णमो साहूणं' न कह कर ‘णमो सव्व साहूणं' क्यों कहा गया है? 'सव्व' का अर्थ है-सर्व अर्थात् सब । साधु के लिए 'सव्व' विशेषण लगाने का क्या प्रयोजन है? इस प्रश्न का समाधान यह है कि- साधुओं में साधना के भेद अनेक अवान्तर भेद होते हैं। जैसे अरिहन्त, सिद्ध में सर्वथा समानता है, वैसी समानता साधुओं में नहीं है। यद्यपि साधुत्व की दृष्टि से सब साधु समान ही हैं तथापि उनमें कोई सामायिक चरित्र वाला, कोई छेदोपस्थापनीय चरित्र वाला, कोई परिहार विशुद्धि चरित्र वाला, कोई सूक्ष्म सम्पराय चरित्र वाला और कोई-कोई यथाख्यात चरित्र वाला होता है। साधु के साथ सव्व (सर्व-सब) विशेषण लगा देने से इन सब की गणना हो जाती हैं। हमारे लिए सभी साधु वन्दनीय है, यह प्रकट करने के लिए 'सव्व' विशेषण लगाया गया है। ___ अथवा कोई छढे गुणस्थानवर्ती प्रमत्त 'संयत साधु होते हैं और कोई सातवें गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान के अप्रमत्तसंयत साधु होते हैं। इन सब साधुओं में से कोई भी साधु न छूटने पावे सबका ग्रहण हो जाये, इस अभिप्राय से 'सव्व विशेषण लगाया गया है। अथवा मुनि (निर्ग्रन्थ) छः प्रकार के होते हैं। कोई पुलाक, कोई बकुश, कोई कषाय-कुशील, कोई प्रतिसेवना कुशील, कोई निर्ग्रन्थ और कोई स्नातक होते हैं यह सभी मुनि वन्दनीय हैं, इस अभिप्राय को प्रकट करने के लिए 'सव्व' विशेषण लगाया गया है। अथवा साधुओ में कोई जिन कल्पी होते हैं, जो उत्सर्ग मार्ग पर चलते हुए वन में एकाकी विचरते हैं। कोई मुनि पडिमाधारी होते हैं। कोई यथालन्द कल्पी होते हैं, जो स्वयं ही लाकर आहार करते हैं। कोई कोई मुनि स्थविर - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ३६
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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