SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थी। पहले उपाध्याय के पास, विधिपूर्वक शास्त्र का अभ्यास करने के लिए शिष्य जन जाया करते थे। अध्ययन प्रणाली के विषय का प्राचीन इतिहास शास्त्र बतलाता है। जिनकी समीपता से अनायास ही लाभ पहुंचता है, उन्हें भी शब्दार्थ के अनुसार उपाध्याय कहते हैं। जिनकी उपाधि अर्थात् समीपता से 'आय' अर्थात् लाभ प्राप्त हो वह उपाध्याय है। आशय यह है कि जैसे गधी की दुकान पर जाने से अनायास ही सुगंध की प्राप्ति हो जाती है, उसी प्रकार उपाध्याय के पास जाने से भी अनायास ही लाभ हो जाता है। उपाध्याय के पास सूत्र का स्वाध्याय सदा चलता रहता है, इसलिए उनके पास जाने वाले को सहज ही स्वाध्याय का लाभ मिल जाता है। तात्पर्य यह है कि जिनकी समीपता से अनायास ही लाभ की प्राप्ति होती है उन्हें भी शब्दार्थ के अनुसार उपाध्याय कहते हैं। अथवा –'आय' का अर्थ है-इष्ट फल। जो इष्ट फल देने के निमित्त हैं उन्हें उपाध्याय कहते हैं। जो आम का वृक्ष मधुर फलों से सम्पन्न है उसके समीप जाने से फल की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार जिनके निमित्त से मनोवांछित फल अनायास ही प्राप्त हो जाये उन्हें उपाध्याय कहते हैं। अथवा-'आधि' शब्द का अर्थ है-मानसिक पीड़ा। उसका लाभ 'आध्याय' कहलाता है। तथा 'आधि' शब्द में जो 'अ' अक्षर है वह कुत्सित अर्थ में प्रयोग किया गया है, अतएव 'अधी' का अर्थ हुआ-कुत्सित बुद्धि-कुबुद्धि । 'अधी' की आय अर्थात् लाभ को 'अध्याय' कहा जाता है। इसके अतिरिक्त 'अध्याय' का अर्थ दुर्व्यान–अप्रशस्त ध्यान भी होता है। इस प्रकार 'आध्याय' (मानसिक पीड़ा) और अध्याय (कुबुद्धि का लाभ तथा दुर्ध्यान) जिनके नष्ट हो जाते हैं वह उपाध्याय है। तात्पर्य यह है कि जो मानसिक पीड़ा से रहित हैं, और अप्रशस्त ध्यान से भी रहित है, उन्हें उपाध्याय कहते हैं। उपाध्याय शब्द की व्याख्या करते हुए टीकाकार ने युक्ति-बल से यह स्पष्ट कर दिया है कि जिसके हृदय में दुर्ध्यान होता है वह उपाध्याय नहीं है। यों तो संसार में अनेक लोग उपाध्याय कहलाते हैं, यहां तक कि 'उपाध्याय' जन्मजात पदवी भी हो गई है और यही नहीं बहुत से लोग महामहोपाध्याय तक कहलाते हैं, लेकिन वे इस व्याख्या के अन्तर्गत नहीं हैं। यहां उपाध्याय के गुणों में एक गुण यह भी बतलाया गया है कि वह दुर्ध्यान से रहित होना चाहिए। जिसने आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान का नाश कर दिया हो अर्थात जो कोरा पंडित ही न हो वरन् पंडित होने के साथ ही धर्म-ध्यान और शुक्लध्यान में वर्तमान रहता हो, वही उपाध्याय पदवी का अधिकारी है। श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ३७ soo0008888888
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy