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करने का उपदेश देते हैं। इस प्रकार आचार्य हमें ज्ञान दर्शन आदि में स्थिर रखते हैं। इसी महान् उपकार से उपकृत होकर हम उन्हें नमस्कार करते हैं।
'णमो उवज्झायाणं' का विवेचन आचार्य को नमस्कार करने के पश्चात् चौथे पद में कहा गया है-णमो उवज्झायाणं-उपाध्याय को नमस्कार हो।
उपाध्याय शब्द का अर्थ बतलाते हुए आचार्य कहते हैं- 'उपाध्याय' 'उप' और 'अध्याय' इन दो शब्दों के मेल से बना है। 'उप' का अर्थ है समीप में, और अध्याय का अर्थ है स्वाध्याय करना। अर्थात् जिनके पास सूत्र का पाठ लेने के लिए विशेष रूप से जाना पड़ता है, जिनके पास सूत्र का पठन-पाठन होता है, और जिनके पास जाने से सूत्रार्थ का स्मरण होता है अर्थात् जो सूत्रार्थ का स्मरण कराते हैं, उन विद्वान् महात्मा को उपाध्याय कहते हैं। शास्त्र में कहा है
बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहे।
तं उवइसंति जम्हा, उवज्झाया तेण वुच्चंति।। अर्थात्-जिनेन्द्र भगवान् द्वारा उपदिष्ट बारह अंग रूप स्वाध्याय बुद्धिमान् गणधरों ने बतलाया है। उसका जो उपदेश करते हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं।
प्रश्न हो सकता है कि आचार्य और उपाध्याय में क्या अन्तर है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि उपाध्याय शिष्यों को मूल सूत्र पढ़ाकर तैयार कर देते हैं और आचार्य सूत्रों की व्याख्या करके समझाते हैं। सूत्रों की व्याख्या करके समझाना आचार्य का काम है। मकान बनाने से पहले नींव तैयार की जाती है और तत्पश्चात् मकान बनाया जाता है। इसी प्रकार पहले सूत्र की भूमिका रूपी नींव डालने का कार्य उपाध्याय करते हैं और उस पर व्याख्या रूपी भवन का निर्माण आचार्य करते हैं।
उपाध्याय शब्द के और अर्थ भी हैं। जैसे-जिनके पास जाने से उपाधि प्राप्त हो-जो शिष्यों को उपाधि देने वाले हों, जो पढ़ाई के साक्षीदाता हों, जिसकी पढ़ाई की प्रतीति हो, उसे उपाध्याय कहते हैं। यहां 'उपाधि' का अर्थ पदवी, अधिकार या प्रमाण-पत्र (मतजपपिबंजम) है।
आज उपाध्याय का नाम मात्र रह गया है। जिसका जब जी चाहता है वही शास्त्र बांचने लगता है। उपाध्याय के समीप जाकर शास्त्राध्ययन करने की अब आवश्यकता नहीं रह गई है। प्राचीन काल में ऐसी अव्यवस्था नहीं ३६ श्री जवाहर किरणावली