________________
असली गुण स्थिति है। परन्तु यह स्थिति गुण आयु के साथ रहने से नष्ट हो गया है। यह स्थिति गुण भी सुख प्राण रूप है।
इसी प्रकार हम आत्मा के अन्यान्य गुणों का भी पता लगा सकते हैं। सिद्ध भगवान् का स्वरूप जानकर हमें यह प्रतीति होती है कि इन्द्रियों के इशारे के सिद्धों ने अपने स्वाभाविक गुणों को प्रकट किया है। सिद्धों के इस कार्य से हमें भी अपना आत्मबल प्रकट करने का मार्ग नजर आ गया है। इस कारण हम सिद्धों को नमस्कार करते हैं।
'णमो आयरियाणं' का विवेचन नमस्कार मंत्र के दो पदों का विवेचन किया जा चुका। तीसरा पद है-णमो आयरियाणं-आचार्यों को नमस्कार हो।
आचार्य किसे कहते हैं, इस संबंध में टीकाकार कहते हैं कि 'आ' अक्षर का अर्थ है-मर्यादापूर्वक या मर्यादा के साथ और 'चार्य' का अर्थ है-सेवनीय अर्थात सेवा करने योग्य। तात्पर्य यह है कि मर्यादा के साथ जिनकी सेवा की जाती है, बिना मर्यादा के जिनकी सेवा नहीं होती अर्थात् भव्य प्राणियों द्वारा मर्यादापूर्वक सेवित हैं उन्हें आचार्य कहते हैं।
भव्य प्राणी आचार्य की सेवा क्यों करते हैं ? इस संबंध में टीकाकार कहते हैं कि सूत्र के मर्म का अर्थ करने का अधिकार जिन साधुओं को है 'वे आचार्य कहलाते हैं। शास्त्र में कहा है
सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो गच्छस्स मेढिभूओ य।
गणतत्तिविप्पमुक्को, अत्थं बाएइ आयरिओ।। इस गाथा में सूत्र के परमार्थ को जानने वाले और शरीर के सब लक्षणों से युक्त मुनि को आचार्य कहा गया है।
आचारांग सूत्र में शरीर के लक्षणों के संबंध में विशद् व्याख्यान किया गया है। वहां बतलाया गया है कि जिसकी आकृति अच्छी होती है उसमें गुण भी प्रायः अच्छे होते हैं। जिसकी आकृति विकृति होती है उसके गुण भी प्रायः वैसे ही होते हैं।
शास्त्र की इस गाथा में कहा गया है कि जो लक्षणों से संपन्न हो और गच्छ का मेढ़ीभूत हो, उसे आचार्य कहते हैं।
खलिहानो में एक लट्ठा (मोटी लकड़ी) गाड़ कर उसके सहारे भूसा और अनाज अलग करने के लिए बैल घुमाये जाते हैं। उस लकड़ी को मेढ़ी कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जो चतुर्विध संघ का मेढ़ी भूत हो, चतुर्विध संघ ३२ श्री जवाहर किरणावली