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अर्थात्-जिन्होंने पुराने काल से बांधे हुए कर्म को भस्म कर दिया है, जो मुक्ति रूपी महल में जा चुके हैं, जो विख्यात हो चुके हैं, जिनके गुणों को भव्य प्राणी भली भांति जानते हैं, जिन्होंने धर्म का अनुशासन किया है, जिनके समस्त कार्य सिद्ध हो चुके हैं वे सिद्ध भगवान् हमारा मंगल करने वाले हों-हमारा कल्याण करें। ऐसे सिद्ध भगवान् को नमस्कार हो।
प्रश्न-सिद्ध भगवान् अगर मुक्ति प्राप्त कर चुके हैं, अगर कृतकृत्य हो चुके हैं, तो हमें उनसे क्या प्रयोजन हैं? उन्हें नमस्कार करने से क्या लाभ है?
इस प्रश्न का समाधान. यहां किया गया है। सिद्ध भगवान् को नमस्कार इस लिए करते हैं कि उनके ज्ञान, दर्शन, चरित्र, सुख आदि गुण सदा शाश्वत हैं। उनका वीर्य अनन्त और अक्षय है। वे इन समस्त आत्मिक णों से अलंकृत हैं। अतएव वह हमारे विषय में भी हर्ष उत्पन्न करते हैं। सिद्धों के इन गुणों को देखकर हम भी यह जानने लगे हैं कि जो गुण सिद्धों में प्रकट हो चुके हैं वही सब गुण हमारी आत्मा में भी सत्ता रूप से विद्यमान हैं। अन्तर केवल यही है कि सिद्धों के गुण पूर्ण रूप से प्रकट हो चुके हैं और हमारे गुण कर्मो के कारण प्रकट नहीं हुए हैं-दबे हुए हैं, क्योंकि आत्म-आत्म द्रव्य की अपेक्षा निश्चयनय की दृष्टि से सिद्धों की हमारी आत्मा समान हैं। ऐसी स्थिति में जिनके गुण प्रकट हो चुके हैं उन्हें नमस्कार करने से हमें अपने गुणों का स्मरण हो आता है और हम उन गुणों को प्रकट करने की चेष्टा करते हैं। इस प्रकार सिद्धों को नमस्कार करने से आत्मशोधन की प्रेरणा प्राप्त होती है, अतएव उन्हें नमस्कार करना चाहिए।
जिस मनुष्य के अन्तःकरण में थोड़े से भी सुसंस्कार विद्यमान हैं वह गणीजन को देखकर प्रमुदित होता है। मानव स्वभाव की यह आन्तरिक वृत्ति है, जिसे नैसर्गिक कहा जा सकता है। अगर कोई विशिष्ट विज्ञानवेत्ता हो तो साधारण जनों को उसे देखकर हर्ष होता है कि उसने हमारा पथ प्रशस्त कर दिया है। इसकी बदौलत हमारे अभ्युदय की कल्पना मूर्त्तिमती हो गई है। इसे आदर्श मानकर हम भी इस पथ पर अग्रसर हो सकेंगे और सफलता प्राप्त कर सकेंगे। इसी प्रकार सिद्धों में और हम में जब मौलिक समानता है तो जिन गुणों को सिद्ध प्रकट कर चुके हैं उन्हीं गुणों को हम क्यों न प्रकट कर सकेंगे।
किसी के किसी गुण का अनुकरण करने के लिए उसके प्रति आदर भाव होना आवश्यक है। इस नियम से सिद्धों के गुणों का अनुकरण करने के लिए उनके प्रति आदर एवं भक्ति की भावना अपेक्षित है। इसी उद्देश्य से सिद्ध भगवान को नमस्कार किया जाता है। ३० श्री जवाहर किरणावली
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