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________________ जिससे व्यक्ति और समष्टि का एकान्त मंगल - साधन होता है उस धर्म को न त्यागने में ही कल्याण है । णमो सिद्धाणं का विवेचन प्रकृत शास्त्र के प्रथम मंगलाचरण के प्रथम पद का विवेचन किया जा चुका है। उसके पश्चात् द्वितीय पद - णमो सिद्धाणं है । णमो सिद्धाणं का अर्थ है - सिद्धों को नमस्कार हो । 1 'नमः' शब्द का अर्थ पहले बतलाया जा चुका है। केवल 'सिद्ध' पद की व्याख्या करना शेष है । अष्ट कर्म रूपी ईंधन को जिन्होंने शुक्ल ध्यान रूपी जाज्वल्यमान अग्नि में भस्म कर दिया है उन्हें सिद्ध कहते हैं । सिद्ध पद की यह व्याख्या निरुक्ति इस प्रकार हैसि - सितं - बंधे द्ध-मातं - भस्म कर दिया है। हु कर्म रूपी ईंधन को । अथवा - सिद्ध 'षिधु' धातु से बना है । षिधु का अर्थ गति करना है । अर्थात् जो गमन कर चुके हैं ऐसे स्थान को जहां से फिर कभी लौटकर नहीं आते उन्हें सिद्ध कहते हैं । अथवा 'षिधु' धातु का अर्थ - सिद्ध हो जाना । जिन का कोई भी कार्य शेष नहीं रहा है - सभी कार्य जिनके सिद्ध हो चुके हैं उन्हें सिद्ध कहते हैं । अथवा - 'षिधञ्' धातु से सिद्ध शब्द बना है षिधुञ् का अर्थ है - शास्त्र या मंगल । जो संसार को भली भांति उपदेश देकर संसार के लिए मंगलरूप हो चुके हैं, उन्हें सिद्ध कहते हैं । ऐसे सिद्ध भगवान् को नमस्कार हो । सिद्ध का अर्थ नित्य भी होता है । नित्य का अर्थ यहां यह है कि जहां गये हैं वहां से लौटकर न आने वाले। ऐसे सिद्ध भगवान् को नमस्कार हो । ख्यातिप्राप्त अर्थात् प्रसिद्ध को भी सिद्ध कहते हैं । जिनके गुण समूह ख्याति प्राप्त कर चुके हैं उन सिद्ध भगवान् के गुण समूह भव्य जीवों को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार जिनके गुण समूह भव जीवों में प्रसिद्ध हैं और जो भव्य जीवों को ही प्राप्त होते हैं उन सिद्ध भगवान् को नमस्कार हो । आचार्य ने सिद्ध भगवान् की व्याख्या इस श्लोक द्वारा और भी स्पष्ट कर दी है ध्यातं सितं येन पुराणकर्म्म, यो वा गतो निर्वृतिसौधमूनि । ख्यातोऽनुशास्ता परिनिष्ठतार्थो, यः सोऽस्तुसिद्धः कृतमंगलोमे । । श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २६
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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