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________________ इस प्रश्न का उत्तर यह है कि भक्त भगवान् पर अहसान करके उन्हें नमस्कार नहीं करता। भगवान् को नमस्कार करने में भक्त का महान् मंगल है। उस मंगल की उपलब्धि के लिए ही भक्त भक्तिभाव से प्रेरित होकर भगवान् के चरणों में अपने आपको अर्पित कर देता है। __ संसार नाना प्रकार की पीड़ा से पीड़ित है। उसे कोई शान्तिदाता नहीं मिला है। कर्म हमें बुरी तरह नचा रहे हैं, असह्य यातनाओं का पात्र बना रहे हैं और अरिहंत भगवान् ने उन कर्मों का विनाश कर दिया है। कर्मों की इस व्याधि से छुटकारा दिलाने वाले महावैद्य वही हो सकते हैं जिन्होंने स्वयं इस व्याधि से मुक्ति पाई है और अनन्त आरोग्य प्राप्त कर लिया है। अरिहंत भगवान् ही ऐसे है। हम कर्म की व्याधि से किस प्रकार छूट सकते हैं-कर्मों का अन्त किस प्रकार होना संभव है, यह बात अरिहंत भगवान् ही हमें बता सकते हैं। उन्होंने सर्वज्ञता-लाभ करके वह मार्ग प्रकाशित भी किया है। इसी कारण अरिहन्त भगवान् हमारे नमस्कार के पात्र हैं वही, शान्तिदाता हैं। पहले 'अरहताणं' का एक रूपान्तर 'अरुहद्भ्यः ' बतलाया जा चुका है। 'अरुंहद्भ्यः ' का अर्थ है 'रुह, का नाश करने वाले। रुह धातु का संस्कृत भाषा में अर्थ है -सन्तान अर्थात् परम्परा । जैसे बीज और अंकुर की परम्परा होती है। बीज से अंकुर उत्पन्न होता है और अंकुर से बीज उत्पन्न होता है, और इस प्रकार बीज और अंकुर की परम्परा चलती रहती है। अगर बीज को जला दिया जाये तो फिर अंकुर उत्पन्न नहीं होता। इसी प्रकार जिन्होंने कर्म रूपी बीज को भस्म कर दिया है-नष्ट कर दिया है और इस कारण जिसका फिर कभी जन्म नहीं होता, अर्थात् कर्म-बीज का आत्यन्तिक विनाश कर देने वाले (अरहंत) को मैं नमस्कार करता हूं। किसी ने ठीक ही कहा है दग्धे बीजे यथाऽत्यन्तं, प्रादुर्भवति नांकुरः। कर्मबीजे तथा दग्धे, न प्ररोहति भवांकुरः। जिस बीज को आत्यन्तिक रूप से जला दिया जाता है, उसे चाहे जैसी कमाई हुई भूमि में बोया जाये, उस से अंकुर नहीं उग सकता। इसी प्रकार कर्म-बीज को एक बार पूर्ण रूपेण भस्म कर देने पर पुनर्जन्म रूपी अंकुर नहीं उग सकता। कई लोगों का कहना है कि जिस कर्म के साथ आत्मा का अनादिकाल से संबंध है, वह कर्म नष्ट कैसे हो जाते हैं ? मगर बीज और अंकुर का संबंध भी अनादिकाल का है। फिर भी बीज को जला देने से उनकी परम्परा का - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २५
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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