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________________ हम अविनाशी हैं और अनेक अनुपम गुणों के आगर हैं, इस तथ्य की प्रतीति मोहनीय कर्म ने रोक दी है। मोहनीय कर्म के प्रभाव से हम दैहिक सुख को आत्मिक सुख और दैहिक दुःख को आत्मिक दुःख मान रहे है। इस पकार मोहनीय कर्म उल्टी प्रतीति कराता है, जिससे आत्मा वास्तविक बात को भूलकर अवास्तविक बात को मान रहा है । आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है । जन्म-मरण उसका स्पर्श भी नहीं कर सकते। मगर आयुकर्म के प्रभाव से उसे जन्म-मरण करने पड़ते हैं। जैसे कोई पुरुष अपने किराये के मकान को छोड़ना नहीं चाहता, फिर भी किराये का पैसा पास में न होने से मकान छोड़ना पड़ता है, इसी प्रकार आत्मा जन्म-मरण के स्वभाव वाला न होने पर भी आयु कर्म की प्रेरणा से विवश होकर जन्म-मरण करता है। आत्मा का चैतन्य नाम-रूप है। इसका नाम अनन्त भी है, किन्तु नाम कर्म, आत्मा के इस नाम को छुड़ाकर नीच नाम-जैसे झाड़, पशु आदि को प्राप्त करवाता है। आत्मा चैतन्य नामवाला एवं निर्विकार है। इसके झाड़, कीड़ा आदि नाम, नामकर्म के प्रभाव से उसी प्रकार हुए हैं जैसे एक ही रंग के कई चित्र बनाने पर किसी का नाम घोड़ा, किसी का नाम राजा और किसी का नाम हाथी आदि हो जाता हैं। जिसके प्रभाव से आत्मा ऊंच-नीच गोत्र में पड़ती है वह गोत्र कर्म कहलाता है। उदाहरणार्थ- एक ही प्रकार के सोने से एक मस्तक का आभूषण उत्तम माना जाता है, पैर का उत्तम नहीं माना जाता। इसी प्रकार यह निर्विकार आत्मा गोत्र कर्म के प्रभाव से ऐसे गोत्रों में जन्म लेती हैं जो लोक में उच्च या नीच कहलाते हैं। इस प्रकार आत्मा की ऊंच-नीच अवस्था कर्म केही प्रभाव से है। आत्मा स्वभाव से इन समस्त विकल्पों से अतीत और अनिर्वचनीय हैं। अन्तराय का अर्थ है विघ्न या बाधा । अन्तराय दो प्रकार का है - (1) द्रव्य रूप में विघ्नबाधा होना और (2) भाग रूप से - अंतरंग आनन्द में बाधा पड़ना । जो कर्म आत्मा की स्वाभाविक शक्ति को प्राप्त करने में बाधक होता है, वह अन्तराय कर्म कहलाता है । इन आठ कर्मों ने अनादि काल से आत्मा को प्रभावित कर रक्खा है। इनके कारण आत्मा अपने स्वरूप से च्युत होकर नाना प्रकार की विभाव परिणति के अधीन हो रहा है। यहां प्रश्न उपस्थित होता है कि आत्मा को क्या करना चाहिए? कर्मों से 'आत्मा की आत्यन्तिक मुक्ति का उपाय क्या है ? २२ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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